ब्रहदिश्वर मंदिर

इस अदभुत मंदिर में परछाई का रहस्य क्या है?

वेबसाईट पर तंजावूर के ब्रहदिश्वर मंदिर के बारे में पढ़ा है .
उसकी अदभुत निर्माण कला के सामने
पीसा की मीनार कहीं नहीं लगती.
इसी प्रकार दक्षिण में एक और मंदिर है,
जो अपनी वास्तु में एक अजब-गजब सा रहस्य छिपाए हुए है. मजे की बात यह है कि
800 वर्ष पूर्व बने इस मंदिर में
इतना उच्च कोटि का विज्ञान दिखाई देता है कि
कई भौतिक विज्ञानी और वास्तुविद अभी तक इसका रहस्य नहीं सुलझा पाए हैं.
हम बात कर रहे हैं

हैदराबाद से केवल सौ किमी दूर तेलंगाना के नलगोंडा जिले में स्थित
“छाया सोमेश्वर महादेव” मंदिर की.

इस की विशेषता यह है कि
दिन भर इस
मंदिर के शिवलिंग पर एक स्तम्भ की छाया पड़ती रहती है,
लेकिन वह छाया कैसे बनती है
यह आज तक कोई पता नहीं कर पाया.
जी हाँ!!
पढ़कर चौंक गए होंगे न आप,
लेकिन प्राचीन भारतीय वास्तुकला इतनी उन्नत थी कि
मंदिरों में ऐसे आश्चर्य भरे पड़े हैं.
उत्तर भारत के मंदिरों पर
इस्लामी आक्रमण का बहुत गहरा असर हुआ था,
और हजारों मंदिर तोड़े गए,
लेकिन दक्षिण में शिवाजी और अन्य तमिल-तेलुगु साम्राज्यों के कारण
इस्लामी आक्रान्ता नहीं पहुँच सके थे.
ज़ाहिर है कि
इसीलिए
दक्षिण में मुगलों की अधिक हैवानियत देखने को नहीं मिलती,
और इसीलिए दक्षिण के मंदिरों की वास्तुकला
आज भी अपने पुराने स्वरूप में मौजूद है.

छाया सोमेश्वर महादेव मंदिर को हाल ही में
तेलंगाना सरकार ने थोड़ा कायाकल्प किया है.
हालाँकि 800 वर्षों से अधिक पुराना होने के कारण मंदिर की दीवार पर कई दरारें हैं,
परन्तु फिर भी शिवलिंग पर पड़ने वाली रहस्यमयी छाया के आकर्षण में काफी पर्यटक इसको देखने आते हैं.
नालगोंडा के पनागल बस अड्डे से केवल दो किमी दूर यह मंदिर स्थित है.
वास्तुकला का आश्चर्य यह है कि
शिवलिंग पर जिस स्तम्भ की छाया पड़ती है,
वह स्तम्भ शिवलिंग और सूर्य के बीच में है ही नहीं.
मंदिर के गर्भगृह में कोई स्तम्भ है ही नहीं
जिसकी छाया शिवलिंग पर पड़े.
निश्चित रूप से मंदिर के बाहर जो स्तम्भ हैं,

उन्हीं का डिजाइन और स्थान कुछ ऐसा बनाया गया है कि
उन स्तंभों की आपसी छाया और सूर्य के कोण के अनुसार किसी स्तम्भ की परछाई शिवलिंग पर आती है.
यह रहस्य आज तक अनसुलझा ही है.

इस मंदिर का निर्माण चोल साम्राज्य के राजाओं ने बारहवीं शताब्दी में करवाया था.
इस मंदिर के सभी स्तंभों पर रामायण और महाभारत की कथाओं के चित्रों का अंकन किया गया है,
और इनमें से कोई एक रहस्यमयी स्तम्भ ऐसा है
जिसकी परछाई शिवलिंग पर पड़ती है.
कई वैज्ञानिकों ने इस गुत्थी को सुलझाने का प्रयास किया,
परन्तु वे केवल इस रहस्य की “थ्योरी” ही बता सके…
एकदम निश्चित रूप से आज तक कोई भी नहीं बता पाया कि आखिर वह कौन सा स्तम्भ है,
जिसकी परछाई शिवलिंग पर पड़ती है.
मंदिर सुबह छः बजे से बारह बजे तक और फिर दोपहर दो बजे से शाम छः बजे तक पर्यटकों के लिए खुला रहता है.
शिवभक्त मंदिर के प्रांगण में ध्यान वगैरह भी कर सकते हैं.
मंदिर में पण्डे कतई नहीं हैं,
केवल एक पुजारी है
जो सुबह-शाम पूजा करता है.
प्रकृति की गोद में स्थित इस मंदिर की छटा निराली ही है.
हमने देखा है कि
अधिकाँश मंदिरों में कई-कई सीढियाँ होती हैं,
परन्तु इस मंदिर की विशेषता यह भी है कि
इसमें केवल दो ही सीढियां हैं,
इसलिए वरिष्ठ नागरिक आराम से मंदिर के अन्दर पहुँच सकते हैं.
एक भौतिक विज्ञानी मनोहर शेषागिरी के अनुसार
मंदिर की दिशा पूर्व-पश्चिम है
और प्राचीन काल के कारीगरों ने
अपने वैज्ञानिक ज्ञान,
प्रकृति ज्ञान
तथा ज्यामिती
एवं सूर्य किरणों के परावृत्त होने के अदभुत ज्ञान का प्रदर्शन करते हुए
विभिन्न स्तंभों की स्थिति ऐसी रखी है,
जिसके कारण सूर्य किसी भी दिशा में हो,
मंदिर के शिवलिंग पर यह छाया पड़ती ही रहेगी.
लेकिन यह केवल थ्योरी है,
क्योंकि यदि आज की तारीख में
इसी मंदिर के पास ऐसा ही एक और मंदिर बनाने की चुनौती विदेशों से उच्च शिक्षा प्राप्त वास्तुविदों और इंजीनियरों को दे दी जाए,
तो वे पनाह माँगने लगेंगे.
ऐसा था हमारा भारतीय संस्कृति ज्ञान एवं उच्च कोटि का वास्तु-विज्ञान….
लेकिन फर्जी इतिहासकार आज भी
पीसा की मीनार
और ताजमहल को महिमामंडित करने के पीछे पड़े रहते हैं,
क्योंकि उन्हें भारत की मिट्टी से कोई लगाव है ही नहीं…….

Author: Sanatan Dharm and Hinduism

My job is to remind people of their roots. There is no black,white any religion in spiritual science. It is ohm tat sat.

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