Ashoka and Akbar were not great!! 

कभी आपने सोचा है कि इस धरती की सबसे प्राचीन हिन्दू सभ्यता, जिसने असंख्य बर्बर आक्रमणों के बाद भी दस हजार वर्षों से अपना अस्तित्व बरकरार रखा है, वह पिछले डेढ़ सौ वर्षों से क्यों लगातार सिमटती जा रही है?**असल में पिछले डेढ़ सौ बर्षों से, पहले तो अंग्रेजी सत्ता और बाद में उसके भारतीय संस्करण ने हमारे दिमाग को झूठी धर्म निरपेक्षता के नाम पर कुछ इस तरह कुंद कर दिया है, कि हमको अपना धर्म दीखता ही नही है।*

*पूरी दुनिया में सिर्फ भारत के हिन्दू ही ऐसे हैं जिनके लिए धर्म सबसे अंतिम मुद्दा है।*

*हमारी सोच को किस तरह से कैद किया गया है इसकी बानगी देखनी हो तो आप कभी अपने बच्चे से पूछ कर देखिये, कि भारत का सबसे महान सम्राट कौन था। वह तपाक से जवाब देगा- सम्राट अकबर, या सम्राट अशोक।*

*बच्चे को छोड़िये, क्या हमने कभी सोचा है कि सिर्फ अपनी जिद के लिए कलिंग के छः साल से अधिक उम्र के सभी पुरुषों की हत्या करवा देने वाला अशोक सिर्फ हिन्दू धर्म को ठुकरा कर बौद्ध अपना लेने भर से महान कैसे हो गया?*

*इतिहास के पन्ने खोल कर देखिये, कलिंग युद्ध के बाद वहां अगले पंद्रह साल तक महिलाएं हल चलाती रहीं क्योकि कोई पुरुष बचा ही नहीं था। लेकिन सिर्फ बौद्ध धर्म अपना लेने भर से अशोक हमारे लिए महान हो गया।*

हमारी महानता विक्रमादित्य से है जिसने भारत की धरती पर पहली बार बड़ा साम्राज्य स्थापित किया

*अपने एक आक्रमण में लाखों हिंदुओं को काट कर रख देने वाले बर्बर हूणों को अपने बाहुबल से रोकने वाला स्कन्दगुप्त हमारे लिए महान था।

*अपनी वीरता से बर्बर अरबों को भारत में घुसने की आदत छुड़ा देने वाले नागभट्ट का हम नाम नहीं जानते।*

*हमें कभी बताया ही नहीं गया कि इस देश में पुष्यमित्र सुंग नाम का भी एक शासक हुआ था जिसने भारत में भारत को स्थापित किया था, वह नही होता तो सनातन धर्म आज से दो हजार साल पहले ही ख़त्म हो गया होता।*

*हम अकबर को सिर्फ इस लिए महान कह देते हैं कि देश की बहुसंख्यक हिन्दू आबादी पर अत्याचार करने के मामले में वह अपने पूर्वजों से थोड़ा कम बर्बर था। उसे महान कहते समय हम भूल जाते हैं कि स्वयं साढ़े पांच सौ शादियां करने वाले अकबर ने भी अपने पूर्वजों की परम्परा निभाते हुए अपनी बेटियों और पोतियों की शादी नहीं होने दी थी। वह इतना महान और उदार था कि उस युग के सर्वश्रेष्ठ गायक को भी उसके दरबार में स्थापित होने के लिए अपना धर्म बदल कर मुसलमान बनना पड़ा था।*

*सेकुलरिज्म के नाम पर अकबर को महान बताने वाले हम, उसी अकबर के परपोते दारा शिकोह का नाम तक नहीं जानते जिसने वेदों और उपनिषदों का ज्ञान प्राप्त किया, उनका उर्दू फ़ारसी में अनुवाद कराया, और अपने समय में हिंदुओं पर होने वाले अत्याचारों पर रोक लगाई।*

*हमारी बुद्धि इस तरह कुंद हो गयी है कि हम अपने नायकों का नाम लेने से भी डरते हैं, कि कहीं कोई हमेंसाम्प्रदायिक न कह दे।*

*आप भारत में ईसाईयों द्वारा चलाये जा रहे स्कूलों के नाम देखिये, निन्यानवे फीसदी स्कूलों के नाम उन जोसफ, पॉल, जोन्स, टेरेसा के नाम पर रखे गए हैं, जिन्होंने जीवन भर गरीबों को फुसला फुसला कर ईसाई बनाने का धंधा चलाया था। पर आपको पूरे देश में एक भी स्कूल उस स्वामी श्रद्धानंद के नाम पर नहीं मिलेगा जिन्होंने धर्मपरिवर्तन के विरुद्ध अभियान छेड़ कर हिंदुओं की घर वापसी करानी शुरू की थी।* *हममें से अधिकांश तो उनका नाम भी नहीं जानते होंगे।*

*ईसाई उत्कोच के बदले अपना ईमान बेच देने वाले स्वघोषित बुद्धिजीवियों और वोट के दलाल राजनीतिज्ञों के साझे षडयंत्र में फँसे हम लोग समझ भी नहीं पाते हैं कि हमारे ऊपर प्रहार किधर से हो रहा है। हम धर्मनिरपेक्षता का राग अलापते रह गए और हमसे बारी बारी मुल्तान, बलूचिस्तान, सिंध, पंजाब, बंग्लादेश, कश्मीर, आसाम, केरल, नागालैंड, और अब बंगाल भी छीन लिया गया। हम न कुछ समझ पाये, न कुछ कर पाये, बस देखते रह गए।*

*आप तनिक आँख उठा कर देखिये, वर्मा के आतंकवादी रोहिंग्यावों पर हमले होते हैं तो दूर भारत के मुसलमानों को इतना दर्द होता है कि वे भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई में आग बरसा देते हैं। दुनिया के किसी कोने में किसी ईसाई पर हमला होता है तो अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस और तमाम ईसाई देश गरज उठते हैं। सबसे कम संख्या वाले यहूदियों में भी इतनी आग है कि कोई उनकी तरफ आँख उठाता है तो वे आँखे निकाल लेते हैं। पर हमारे अपने देश में, अपने लोगों को जलाया जाता है, भगाया जाता है, उजाड़ दिया जाता है पर हम साम्प्रदायिक कहलाने के डर से चूँ तक नहीं करते।*

*बंगाल के दंगे को अगर हम प्रशासनिक चूक भर मानते हैं तो हमसे बड़ा मुर्ख कोई नहीं। बंगाल का आतंक हमारे लिए इस प्रश्न का उत्तर खोजने का सूत्र है कि उत्तर में कश्मीर से, पूर्व में बंगाल-आसाम से और दक्षिण में केरल से चली इस्लामिक तलवार हमारी गर्दन पर कितने दिनों में पहुँचेगी ।*

*श्रीमान, जो सभ्यता अपने नायकों को भूल जाय उसके पतन में देर नहीं लगती। भारत की षड्यंत्रकारी शिक्षा व्यवस्था के जाल से यदि हम जल्दी नहीं निकले, और झूठी धर्मनिरपेक्षता का चोला हमने उतार कर नहीं फेंका तो शायद पचास साल ही काफी होंगे हमारे लिए।*

*भाई साहब, उठिए… इस जाल से निकलने का प्रयास कीजिये, स्वयं को बचाने का प्रयास कीजिये। हम उस आखिरी पीढ़ी से हैं जो प्रतिरोध कर सकती है, हमारे बाद की पीढ़ी इस लायक भी नहीं बचेगी कि प्रतिकार कर सके

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Author: Sanatan Dharm and Hinduism

My job is to remind people of their roots. There is no black,white any religion in spiritual science. It is ohm tat sat.

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