और इस तरह से नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सीट थाली में सजा कर चीन को दे दी

जब भी चीन के साथ भारत का तनाव होता है तब आज़ाद भारत के पहले पीएम नेहरू का जिक्र जरूर आता है. नेहरू की गलतियों को भारत आज़ादी के इतने सालों बाद भी भुगत रहा है. नेहरू की नीतियों के कारण भारत ने अपना बड़ा भूभाग गंवाया. ये नेहरू की नीति ही थी कि उन्होंने हाथ में आई हुई संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की सीट थाली में सजा कर चीन को सौंप दिया. आज हम नेहरू की इसी ऐतिहासिक गलती की कहानी जानेंगे जिसे कभी भूला नहीं जा सकता और न माफ़ किया जा सकता है.

संयुक्त राष्ट्र संघ का जब गठन हुआ और उसके सदस्य बनाये जा रहे थे तब भारत आज़ाद नहीं हुआ था. ये बात है 1945 की. सैन फ्रांसिस्को में शुरू हुए और दो महीनों तक चले 50 देशों के संयुक्त राष्ट्र स्थापना सम्मेलन में भारत के भी प्रतिनिधि भाग ले रहे थे. उन दिनों चीन गृह युद्ध में उलझा था. च्यांग काई शेक की कुओमितांग पार्टी और माओ त्से तुंग की कम्युनिस्ट पार्टी के बीच खुनी संघर्ष चल रहा था. 1949 में जब चीन के गृहयुद्ध में कम्युनिस्ट पार्टी की जीत हुई तो च्यांग काई शेक को अपने समर्थकों के साथ भाग कर ताइवान द्वीप पर शरण लेनी पड़ी. कुओमितांग पार्टी ने ताइवान में रिपब्लिक ऑफ़ चाइना सरकार का गठन किया और दावा किया कि वही असली चीन है. माओ त्से तुंग ने मुख्य भूमि वाले चीन का नाम रखा पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना. चूँकि संयुक्त राष्ट्र के घोषणा पत्र पर 1945 में रिपब्लिक ऑफ़ चाइना के नाम का हस्ताक्षर था इसलिए संयुक्त राष्ट्र ने माओ त्से तुंग के कब्जे वाली पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना को यह सीट देने से इनकार कर दिया था और ताइवान को सीट दे दी गई.

1947 में भारत आज़ाद हुआ तो नेहरू ने प्रधानमंत्री के साथ साथ विदेश मंत्री का पदभार भी संभाला. वो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और रूस की साम्यवादी विचारधारा से बहुत ही अधिक प्रभावित थे. इसलिए जब 1949 में माओ त्से तुंग ने कुओमितांग पार्टी को खदेड़ कर पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना का गठन किया तो उसे सबसे पहले मान्यता देने वालों में भारत भी था.. नेहरू को भरोसा था कि एक दिन भारत और चीन दोस्ती की नयी मिसाल बनायेंगे. उन्हें यकीन था हिंदी चीनी भाई भाई बनेंगे.

साल 1950, आज़ादी के बाद भारत एक बहुदलीय लोकतंत्र बन कर उभरा, जनसँख्या की दृष्टि से भारत उस वक़्त भी दूसरा सबसे बड़ा देश था. जबकि ताइवान भारत के मुकाबले एक बहुत ही छोटा द्वीप. उन्ही दिनों अमेरिका के सियासी गलियारों में ये चर्चा उठने लगी कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सीट ताइवान से लेकर भारत को दे दिया जाए. इस बात का जिक्र पंडित नेहरू की बहन विजय लक्ष्मीपंडित ने अमेरिका से लिखी एक चिट्ठी में किया. उस वक़्त विजयलक्ष्मी पंडित अमेरिका में भारत की राजदूत थीं. उन्होंने नेहरू को चिट्ठी लिखते हुए कहा कि वाशिंगटन में ये चर्चा चल रही है भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की सीट दे दी जाए. उन्होंने चिट्ठी में ये भी लिखा कि नेहरू को इस अवसर का फायदा उठाना चाहिए. लेकिन नेहरू का मानना था कि इस सीट पर चीन का अधिकारी है और ताइवान से लेकर वो सीट चीन को दे देनी चाहिए. नेहरू का ये भी मानना था कि चीन की सीट ताइवान को देना चीन के लिए अपमानजनक बात होगी. उनका ये भी मानना था कि अगर भारत ने वो सीट स्वीकार की तो भारत और चीन के रिश्ते बिगड़ जायेंगे. इस बात का जिक्र उन्होंने अपनी बहन विजयलक्ष्मी पंडित की चिट्ठी के जवाब में लिखा. नेहरू का ये भी मानना था कि भारत सुरक्षा परिषद् की सीट का हकदार तो है लेकिन जब चीन को उसका अधिकार नहीं मिल जाता तब तक भारत अपना अधिकार स्वीकार नहीं कर सकता.

नेहरू किसी भी कीमत पर चीन की दोस्ती खोना नहीं चाहते थे और उन्होंने इसके लिए देशहित जो ताक पर रख दिया. अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक विश्लेषक आज भी मानते हैं कि नेहरू ने एक ऐसी गलती कि जो कोई भी देश नहीं करता, कम से कम अपने हितों की तिलांजलि दे कर तो कतई नहीं. ये वही बात हो गई कि भले हमको खुद नंगा रहना पड़े लेकिन अपने ऊपर का कपडा उतार कर हम दूसरों को दान कर दे और नेहरू इसी नीति का पालन कर रहे थे. नेहरू जिसे अपनी नीति मानते थे वो दरअसल उनकी नीति नहीं गलती थी. देश आज भी इसके परिणाम भुगत रहा है.

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अजमेर ( राजस्थान ) -ख्वाजा मोइद्दीन चिश्ती

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आज हिन्दुओं के मूर्खता का आलम यह है कि….. आज #अजमेर ( राजस्थान ) को….. #ख्वाजा मोइद्दीन चिश्ती के दरगाह के लिए ज्यादा जाना जाता है….. और, लोग अजमेर उसी की दरगाह पर चादर चढाने हेतु जाया करते हैं…!
लेकिन…. आपको यह जान कर हैरानी मिश्रित दुःख की अनुभूति होगी कि….. उसी अजमेर से लगभग 11 किलोमीटर दूर पुष्कर झील है…. जिसके पास ही एक अतिप्राचीन (14 वीं सदी का ) भगवान ब्रम्हा का एकमात्र मंदिर है…. और, कहा जाता है कि….. बिना पुष्कर झील में स्नान किये…. चारो धाम ( केदारनाथ, बद्रीनाथ , रामेश्वरम और द्वारका ) की यात्रा भी पूर्ण नहीं हो पाती है…!
फिर भी हिन्दुजन अपने मूर्खता से वशीभूत होकर … ऐसे पवित्र उपासना स्थल की अवहेलना कर…. मोइद्दीन चिश्ती की दरगाह पर चादर चढाने को ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं….!
जहाँ तक बात रही ख्वाजा (???) मोइद्दीन चिश्ती की …. तो भारत में इस सूफी की ख्याति… कदाचित सबसे अधिक है…!
इस सूफी को … महान संत… देवता का अवतार….. धर्मनिरपेक्षता … और, भारत के गंगा-जमुना की सम्मिलित संस्कृति की साक्षात् मूर्ति कहा जाता है…..!
छोटे लोगों की तो बात ही जाने दें….. हमारे प्रधानमंत्री… और, राष्ट्रपति तक भी इसके मजार पर जा कर शीश नवाने और…. चादर चढाने में गर्व की अनुभूति करते हैं….!
लेकिन…. बहुत कम लोगों को ही ये मालूम है कि…… इस व्यक्ति ने भारत के इस्लामीकरण में कितनी उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी….. और, अपनी मृत्यु के 800 साल भी निभा रहा है…!
कमोबेश… लगभग हरेक सूफी और मजारों के चमत्कारों के किस्सों की तरह…. मोइद्दीन चिश्ती के चमत्कारों की भी काफी कथाएँ प्रचलित हैं…!
वैसे…. आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि….. ये मोइद्दीन चिश्ती साहब…. मोहम्मद साहब के वंशज समझे जाते हैं….. और, इन्होने सूफी की दीक्षा उस्मान हरवानी से ली थी…. जो की अपने समय के माने हुए सूफी संत कहलाते थे…!
सियर अल अकताब नामक पुस्तक के अनुसार….. मोइद्दीन चिश्ती के भारत आने के बाद से ही….. भारत में इस्लाम का पदार्पण हुआ….!
इस किताब के अनुसार… उन्होंने अपने तर्क और विद्वता से…. हिंदुस्तान में शिर्क (हिन्दू धर्म ) और कुफ्र ( मूर्ति पूजा ) के अँधेरे को नष्ट कर दिया….!
सत्तर वर्ष तक मोइद्दीन चिश्ती …. भारत की भूमि पर लगातार नमाज पढ़ते रहे….. और, उस दौरान जिस पर भी इनकी नजर पढ़ी….. वो… तुरत मुसलमान बन कर … तथाकथित अल्लाह का सामीप्य पा गया…!
हालाँकि…. कहा जाता है कि…. मोइद्दीन चिश्ती सोना बनाना जानते थे…. लेकिन… ये बात सत्य है कि…. इनके पाकशाला में इतना भोजन बनता था…. कि… नगर के सभी दरिद्र लोग वहां भोजन कर सकें…!
कहा जाता है कि…. जब नौकर उनसे धन मांगने जाता था तो…. वे अपने नमाज के दरी का कोन उठा देते थे….. जहाँ ढेर सारा सोना पड़ा रहता था….!
ये मोइद्दीन चिश्ती …. भारत कैसे पहुँच गए…. इसके बारे में एक बहुत ही मशहूर कहानी है कि….
एक बार जब … मोइद्दीन चिश्ती … मुहम्मद साहब के मजार की यात्रा करने गए तो….. वहां मजार से आवाज आई कि….. मोइद्दीन, तुम हमारे मजहब के सार हो और तुम्हे हिंदुस्तान जाना है…. क्योंकि… हिंदुस्तान के अजमेर में मेरा एक वंशज जिहाद करने गया था….. परन्तु वो….. काफिरों के हाथो मारा गया ….. और, अब वो भूमि काफिर हिन्दुओं के हाथ में चली गयी है…!
अतः… तुम्हारे हिंदुस्तान जाने से … इस्लाम एक बार फिर…. वहां अपनी प्रतिष्ठा प्राप्त करेगा…. और, काफिर हिन्दू अल्लाह के कोप का भजन बनेंगे….!
इसपर… मोइद्दीन चिश्ती ने कहा….. “”हालाँकि वहां झील के पास बहुत से मूर्ति और मंदिर हैं…. लेकिन, अगर अल्लाह और पैगम्बर ने चाहा तो….मुझे उन मंदिरों और मूर्तियों को मिटने में ज्यादा समय नहीं लगेगा…!
इसके बाद …. ये मोइद्दीन चिश्ती साहब … हिंदुस्तान आकर …. यहाँ अपने इस्लाम का परचम लहराने लगे….!
अगर… मोइद्दीन चिश्ती के बारे में कहे जाने वाले…. चमत्कारिक कहानियों को वास्तविकता में कहें तो…. वो इस प्रकार की रही होगी कि…..
अजमेर में … मोइद्दीन चिश्ती से पहले भी कोई सूफी…. भारत में इस्लाम फैलाने के उद्देश्य से आया था…. जो कि…. यहाँ के हिन्दुओं के हाथो मारा गया…!
जब मोइद्दीन चिश्ती…. हज करने गए तो…. वहां के मुसलमानों ने चिश्ती को यह बात बताई….. और, उन्हें ढेर सारा धन देकर …. उन्हें जिहाद हेतु भारत जाने को प्रेरित किया….!
मोइद्दीन चिश्ती भारत आये…. और, अपने अथाह धन ( जो उन्हें जिहाद के लिए अरब के मुस्लिम शासकों द्वारा मिल रहा था) … और झूठे चमत्कारों के बल पर….. यहाँ के गरीब और अन्धविश्वासी लोगों में अपनी पैठ बना कर … उनका धर्मान्तरण शुरू कर दिया….!
फिर कुछ प्रभावशाली लोगों ने …जो किन्ही कारणों से …. दिल्ली के महाराज …. पृथ्वीराज चौहान से किसी कारण से रुष्ट थे….. चिश्ती से संपर्क किया ….और, उन सब ने मिल मोहम्मद गोरी को भारत पर आक्रमण के लिए प्रेरित किया…. और, उसे यहाँ हर संभव मदद का आश्वासन दिया….
अंततः…. गोरी ने भारत पर आक्रमण किया…. और, एक सच्चे हिन्दू राजा पृथ्वीराज चौहान की हत्या कर दी गयी…. और… उसके बाद भारत में इस्लाम के प्रसार का मार्ग प्रशस्त हो गया…!
सियर अल अकताब किताब के अनुसार…. इस घटना से पहले ही…. चिश्ती …. उस समय के मशहूर योगी…. अजयपाल को…. मुस्लिम बने में सफल हो गया था…. और, उसके मुसलमान बनाते ही….. चिश्ती ने अपना डेरा अजयपाल के विशाल मंदिर में ही जमा लिया…!
मोइद्दीन चिश्ती के मजार के बाहर…. विशाल बुलंद दरवाजों पर बने हिंदूवादी नक्काशी आज भी इस बात के गवाही देते हैं कि…. मोइद्दीन चिश्ती कि अगुआई में किस प्रकार भारत में धन और झूठे चमत्कारों के बल पर…. भारत का इस्लामीकरण का धंधा चलाया गया…!
आज भी एक ब्राह्मण परिवार चन्दन घिस कर…. मोइद्दीन चिश्ती के दरगाह में भेजता है…. जिसका लेप चिश्ती के मजार पर लगाया जाता है…!
परन्तु…. यह सभी जानते हैं कि…. इस्लाम में चन्दन घिसने की कोई प्रथा है ही नहीं…!
जाहिर है कि….. पुरातन काल से आज तक वो चन्दन … महंत अजयपाल के मंदिर के मूर्तियों के लिए भेजी जाती रही होंगी…. जिसे अब मजार पर लगा दिया जाता है…!
सियार अल अफीरिन… नामक पुस्तक…. चिश्ती के बारे में लिखते हैं कि….. चिश्ती के भारत आने से… भारत में इस्लाम का मार्ग प्रशस्त हो गया…. और, चिश्ती ने भारत में इस्लाम के प्रति अन्धविश्वास को ख़त्म कर…. भारत में इस्लाम को चारो और फैलाया….!
आमिर खुर्द की चौपाइयों के अनुसार…. चिश्ती के आने से पहले…. हिंदुस्तान .. इस्लाम और शरियत कानून से अनभिज्ञ था…. और… किसी को अल्लाह की महानता का ज्ञान नहीं था…. ना ही किसी ने काबा के दर्शन नहीं किये थे….!
लेकिन…. ख्वाजा के आने बाद….. उसकी तलवार और बुद्धि के कारण कुफ्रों की भूमि में … मंदिरों और मूर्तियों की जगह … मस्जिदों के मेहराब बन गए…!
जिस भूमि पर पहले…. सिर्फ मूर्तियों का गुणगान और मंदिरों की घंटियाँ सुनाई थी .. अब उस भूमि पर ….. नारिये तकबीर ( अल्लाहो -अकबर ) सुनाई देती है….!
मोइद्दीन चिश्ती के इस्लाम के प्रति इन्ही योगदानों के कारण उन्हें….. “” नबी ए हिन्द “” ( हिंदुस्तान का पैगम्बर ) भी कहा जाता है….. क्योंकि…. भारत में इस्लाम उन्ही के बदौलत फैला है….!
मोइद्दीन चिश्ती के…. इस्लाम पर किये गए इन्ही योगदानों के कारण…. हर पाकिस्तानी या बांग्लादेशी प्रधानमंत्री/राष्ट्रपति उनका शुक्रिया अदा करने उनके मजार पर जाता है….. क्योंकि…. मोइद्दीन चिश्ती के बिना…. भारत में इस्लाम का फैलना बेहद ही मुश्किल था…!
अब आप खुद ही सोचें….. कि…. क्या हम हिन्दुओं से भी ज्यादा मूर्ख कोई हो सकता है….. जो अपने विनाशकर्ता को पूजे और…. उसपर अंध श्रद्धा दिखाए…?????
जागो हिन्दुओं…… अगर ऐसे ही आँख बंद करके भेडचाल में चलते रहे तो…… कल को तुम्हारा कोई नामलेवा नहीं बचेगा….!
जय महाकाल…!!!
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