शौचालय का इतिहास

🍁🍁🍁🍁#शौचालयकाइतिहास🍁🍁🍁🍁 👉जिसे बाद मे #मुग़लोनेधर्मान्तरण और #अंग्रेज़ोंनेफूट डालने के लीये अपनाया l जो आज भी….#राजनीतीकागहममुद्दाहै l 🚩🌍🚩विश्व इतिहास में सबसे पहले वर्ष 2000 बी.सी. में भारत के पश्चिमोत्तर क्षेत्रा (इसमें वर्तमान पाकिस्तान भी शामिल है) में सिंधु घाटी सभ्यता में सीवर तंत्रा के अवशेष पाए गए। 👉इन शौचालयों में मल को पानी द्वारा बहा दिया जाने की व्यवस्था थी। इन्हें ढंकी हुई नालियों से जोड़ा हुआ था। इस कालखंड में विश्व में और कहीं भी ऐसे शौचालयों का कोई विवरण नहीं मिलता। 🍁ईसा पूर्व 1200 में मिश्र में शौचालय मिलते हैं, परंतु उनमें मिट्टी के पात्रों में शौच किया जाता था, जिसे बाद में दासों द्वारा खाली किया जाता था। ईस्वी संवत् पहली शताब्दी में रोमन सभ्यता में शौचालय मिलते हैं। इस काल में अवश्य शौचालय की अच्छी व्यवस्था पाई जाती है। 👉कहा जाता है कि….#ग्रीस में #भारत से जो ज्ञान पहुंचा था, उसकी ही व्यावहारिक परिणति #रोमन सभ्यता में पाई जाती है। प्रकारांतर से #रोममेंशौचालयोंकीव्यवस्थाभारतकीही_देन कही जा सकती है।

🍁रोमन सभ्यता के पतन के बाद लंबे समय तक यूरोप में शौचालयों की व्यवस्था का अभाव रहा। स्थिति इतनी विकट थी कि ग्यारहवीं शताब्दी तक लोग सड़कों पर मल फेंक दिया करते थे। कई स्थानों पर घरों में मल करने के बाद उसे खिड़की से बाहर फेंक दिया जाता था जिससे आने-जाने वालों को काफी असुविधा का सामना करना पड़ता था। इस काल में लोग कहीं भी मूत्रात्याग कर देते थे। सड़कों के किनारे से लेकर बेडरूम तक में। यूरोप में छठी शताब्दी से लेकर सोलहवीं शताब्दी तक का काल अंधकार का काल था, जिसमें सर्वत्रा अज्ञान और अंधविश्वास का बोलबाला था। इस पूरे कालखंड में मनुष्य के मल के निस्तारण की कोई उपयुक्त व्यवस्था पूरे यूरोप में कहीं नहीं थी।

🍁प्रसिद्ध इतिहासकार #भगवान_सिंह बताते हैं….कि भारतीय सभ्यता में प्रारंभ से ही शौचालयों की बजाय खुले में शौच जाने को प्राथमिकता दी जाती रही है। यदि राजपरिवारों में शौचालय बनाए भी गए तो उसका एक खास प्रारूप विकसित किया गया था। इसमें जमीन में गहरा गड्ढा करके उसमें एक के ऊपर एक करके 8-10 मिट्टी के घड़ों की श्रृंखला बनाई जाती थी। प्रत्येक घड़े के तल में छेद होता था। इस प्रक्रिया में पानी और मिट्टी की अभिक्रिया द्वारा मल पूरी तरह मिट्टी में ही मिल जाता था। उसे बाहर फेंकने की आवश्यकता नहीं पड़ती थी।

🍁मुस्लिमों के आक्रमण के बाद अवश्य शौचालय बनाए जाने लगे। मुस्लिम बादशाहों ने अपनी बेगमों को परदे में रखने के लिए महलों के अंदर ही शौचालय बनावाए, परंतु उन्हें शौचालय बनाने की कला ज्ञात नहीं थी।
👉साथ ही वे #इस्लामस्वीकार करने वाले #हिंदू स्वाभिमानियों का मानभंग भी करना चाहते थे,,, इसलिए उन्होंने ऐसे शौचालय बनावाए, जिनमें मल के निस्तारण की कोई व्यवस्था नहीं होती थी। उन शौचालयों में से मल को मनुष्यों द्वारा ही उठाकर फेंकवाया जाता था। 👉इस घृणित कार्य में मुस्लिम बादशाहों ने उन्हीं स्वाभिमानी #हिंदू जाति के लोगों को लगाया जो किसी भी हालत में #इस्लाम स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। उन लोगों को #भंगी कहा गया जो कालांतर में #अछूत कहलाए।
👉मुस्लिम बादशाहों से यह गलत परंपरा उनके हिंदू दरबारियों में पहुंची और इस प्रकार हिंदू लोगों में भी घरों में शौचालय और उनका मल उठाने के लिए मनुष्यों को नियुक्त करने की गलत परंपरा शुरू हो गई।

🍁इस प्रकार शौचालयों की व्यवस्थित विज्ञान का ज्ञान रखने वाले भारत में मनुष्य द्वारा ही मनुष्य का मल उठाने की घृणित प्रथा की शुरूआत हुई। इसका अंत बाद में अंग्रेजों ने आकर किया परंतु उन्होंने इसे भारतीय समाज के दोष के रूप में देखा। उन्होंने इसके पीछे के इतिहास को जानने और समझने की कोशिश नहीं की। उलटे उन्होंने इसके बहाने समाज में फूट पैदा करने की कोशिशें की। वे काफी हद तक सफल भी रहे।

⭕️👉 #️Note:-आज भी दलित आंदोलन अछूत-समस्या के मूल को समझे बिना चलाया जा रहा है। दु:खद यह है कि, जिन कट्टरपंथी और साम्राज्यवादी मुसलमान शासकों ने इसकी शुरूआत की, आज का #दलित_आंदोलन उसी मानसिकता के मुस्लिम राजनीति के साथ मिलने की कोशिशों में भी जुटा हुआ है।

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Author: Sanatan Dharm and Hinduism

My job is to remind people of their roots. There is no black,white any religion in spiritual science. It is ohm tat sat.

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