KatyAyani  mother- navdurga 


नवरात्री के षष्ठम दिन कात्यायनी रूप की पूजा
नवरात्री पूजा – छठे दिन माता कात्यायनी की पूजा विधि
चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलावरवाहना।

कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानव घातिनी॥
श्री दुर्गा का षष्ठम् रूप श्री कात्यायनी। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं। नवरात्रि के षष्ठम दिन इनकी पूजा और आराधना होती है। इनकी आराधना से भक्त का हर काम सरल एवं सुगम होता है। चन्द्रहास नामक तलवार के प्रभाव से जिनका हाथ चमक रहा है, श्रेष्ठ सिंह जिसका वाहन है, ऐसी असुर संहारकारिणी देवी कात्यायनी कल्यान करें।
नवरात्री की छठे दिन माता कात्यायनी की पूजा
/h3>नवरात्री दुर्गा पूजा छठा तिथि – माता कात्यायनी की पूजा :
माँ दुर्गा के छठे रूप को माँ कात्यायनी के नाम से पूजा जाता है। महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में पैदा हुई थीं। महर्षि कात्यायन ने इनका पालन-पोषण किया तथा महर्षि कात्यायन की पुत्री और उन्हीं के द्वारा सर्वप्रथम पूजे जाने के कारण देवी दुर्गा को कात्यायनी कहा गया। देवी कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं इनकी पूजा अर्चना द्वारा सभी संकटों का नाश होता है, माँ कात्यायनी दानवों तथा पापियों का नाश करने वाली हैं। देवी कात्यायनी जी के पूजन से भक्त के भीतर अद्भुत शक्ति का संचार होता है। इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होने पर उसे सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त होते हैं। साधक इस लोक में रहते हुए अलौकिक तेज से युक्त रहता है। माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यन्त दिव्य और स्वर्ण के समान चमकीला है। यह अपनी प्रिय सवारी सिंह पर विराजमान रहती हैं। इनकी चार भुजायें भक्तों को वरदान देती हैं, इनका एक हाथ अभय मुद्रा में है, तो दूसरा हाथ वरदमुद्रा में है अन्य हाथों में तलवार तथा कमल का फूल है।
माँ कात्यायनी की पूजा विधि
जो साधक कुण्डलिनी जागृत करने की इच्छा से देवी अराधना में समर्पित हैं उन्हें दुर्गा पूजा के छठे दिन माँ कात्यायनी जी की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए फिर मन को आज्ञा चक्र में स्थापित करने हेतु मां का आशीर्वाद लेना चाहिए और साधना में बैठना चाहिए। माँ कात्यायनी की भक्ति से मनुष्य को अर्थ, कर्म, काम, मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। दुर्गा पूजा के छठे दिन भी सर्वप्रथम कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करें फिर माता के परिवार में शामिल देवी देवता की पूजा करें जो देवी की प्रतिमा के दोनों तरफ विरजामन हैं। इनकी पूजा के पश्चात देवी कात्यायनी जी की पूजा कि जाती है। पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का ध्यान किया जाता है
देवी कात्यायनी के मंत्र
चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।

कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
माता कात्यायनी की ध्यान
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।

सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥

स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।

वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥

पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।

मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥

प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।

कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
माता कात्यायनी की स्तोत्र पाठ
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।

स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥

पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।

सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥

परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।

परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
देवी कात्यायनी की कवच
कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।

ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥

कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥
देवी कात्यायनी की कथा
देवी कात्यायनी जी के संदर्भ में एक पौराणिक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार एक समय कत नाम के प्रसिद्ध ॠषि हुए तथा उनके पुत्र ॠषि कात्य हुए, उन्हीं के नाम से प्रसिद्ध कात्य गोत्र से, विश्वप्रसिद्ध ॠषि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। देवी कात्यायनी जी देवताओं ,ऋषियों के संकटों को दूर करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में उत्पन्न होती हैं। महर्षि कात्यायन जी ने देवी पालन पोषण किया था। जब महिषासुर नामक राक्षस का अत्याचार बहुत बढ़ गया था, तब उसका विनाश करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने अपने तेज़ और प्रताप का अंश देकर देवी को उत्पन्न किया था और ॠषि कात्यायन ने भगवती जी कि कठिन तपस्या, पूजा की इसी कारण से यह देवी कात्यायनी कहलायीं। महर्षि कात्यायन जी की इच्छा थी कि भगवती उनके घर में पुत्री के रूप में जन्म लें। देवी ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार की तथा अश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेने के पश्चात शुक्ल सप्तमी, अष्टमी और नवमी, तीन दिनों तक कात्यायन ॠषि ने इनकी पूजा की, दशमी को देवी ने महिषासुर का वध किया ओर देवों को महिषासुर के अत्याचारों से मुक्त किया।
कात्यायिनी : महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्होंने उनके यहां पुत्री रूप में जन्म लिया था, इसीलिए वे कात्यायिनी कहलाती है।
सफलता का अचूक मन्त्र
सर्व मंगल माँड़गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।

शरण्ये त्र्यम्बिके गौरी नारायणी नामोस्तुते ।।
उपाय (1) :- जो लोग फिल्म इन्डस्ट्री या ग्लैमर के क्षेत्र से जुड़े हुए है, देशी घी का तिलक देवी माँ को लगाएं । देवी माँ के सामने देशी घी का दीपक जरुर जलाएं | ऐसा करने से फिल्म इन्डस्ट्री या ग्लैमर के क्षेत्र में सफलता तय है ।

उपाय (2):- खेलकूद के क्षेत्र सफलता पाने के लिए देवी माँ को सिन्दूर और शहद मिलाकर तिलक करें । अपनी माँ का आशीर्वाद जरुर ले । दोनों माँ का आशीर्वाद आपको सफलता जरुर दिलाएगा ।

उपाय (3):- राजनीती के क्षेत्र में सफलता पाने के लिए लाल कपड़े में २१ चूड़ी,२ जोड़ी चांदी की बिछिया, ५ गुड़हल के फूल, ४२ लौंग, ७ कपूर और पर्फुम बांधकर देवी के चरणों में अर्पित करें । सफलता जरुर मिलेगी

उपाय (4) :- प्रतियोगिता में सफलता के लिए ७ प्रकार की दालो का चूरा बनाकर चींटियों को खिलाने से सफलता मिलेगी ।

उपाय (5):- हर क्षेत्र में सफलता पाने के लिए कुमकुम, लाख,कपूर, सिन्दूर, घी, मिश्री और शहद का पेस्ट तैयार कर लें । इस पेस्ट से देवी माँ को तिलक लगाएं । अपने मस्तक पर भी पेस्ट का टीका लगाएं । आपको जरुर सफलता मिलेगी ।

उपाय (6):- हर क्षेत्र में सफलता पाने के लिए मिटटी को घी और पानी में सानकर ९ गोलिया बना लीजिये । इन गोलियों को छायां में सुखा लीजिये। इन गोलियों को पीले सिन्दूर की कटोरी में भरकर देवी को चढ़ा दीजिये । नवमी दिन इन गोलियों को नदी में जरुर बहा दीजिये और सिन्दूर को संभाल कर रखिये । जरुरी काम से जाते समय हर सिन्दूर का टीका लगाइए सफलता जरुर मिलेगी ।
प्रेम से बोलो जय माता की

बोलिए सच्चे दरबार की जय

सच्ची ज्योता वाली माता तेरी सदा ही जय

जय माता कात्यायनी

Author: Sanatan Dharm and Hinduism

My job is to remind people of their roots. There is no black,white any religion in spiritual science. It is ohm tat sat.

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