Even if we think that we know everything, we shouldn’t feel reluctant in approaching our masters and learn the secrets of righteousness and the inner reality from them. This is what Lord Rama teaches us by doing it himself. The depth of the Vedic teachings is such that every time a person comes back to it, however a great scholar he might be, he receives a new and fresh insight into his own life through them.
Picture: Lord Rama seated at the lotus feet of his master MaharshiVasishtha.
भले ही हम यह सोचते हों कि हमें तो सब कुछ पता है, फिर भी गुरुजनों की सन्निधि में जा कर और उनके चरणों में बैठ कर धर्म तथा अध्यात्म के गुह्य रहस्यों का ज्ञान प्राप्त करते ही रहना चाहिये। स्वयं भगवान् राम सर्वज्ञ होते हुए भी केवल बाल्यावस्था में ही अध्ययन करने के लिये गुरुजनों के पास नहीं गये, अपितु वनवास से वापस आकर अयोध्यापति बन जाने के उपरान्त भी गुरुजनों की सन्निधि में बैठ कर उनके उपदेश सुना करते थे। गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं – “बेद पुरान बसिष्ट बखानहिं। सुनहिं राम जद्यपि सब जानहिं” (श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड २५.१) अर्थात् ‘महर्षि वसिष्ठ जी वेद और पुराणों की कथायें वर्णन करते हैं और श्री राम जी सुनते हैं, यद्यपि वे सब जानते हैं’। वास्तविकता यह है कि हमारे प्राचीन वेदों के मन्त्रों का गाम्भीर्य ही कुछ ऐसा है कि चाहें बड़े से बड़ा विद्वान ही क्यों न हो, हर बार जब वह उन्हें सुनता है और उनकी गहराई में प्रवेश करने का प्रयत्न करता है, तो उसमें से अपने जीवन व आन्तरिक विकास के लिये ज्ञान व अनुभूति के कोई न कोई अमूल्य मोती लेकर ही लौटता है। अतः इनका अध्ययन व श्रवण करने के लिये सदैव ज्ञानी महापुरुषों की सन्निधि में जाना ही चाहिये; इसी में ही अपना एवं समाज का कल्याण है। ॐ
चित्र: अपने गुरुदेव महर्षि वसिष्ठ के चरणों में बैठे भगवान् श्री राम॥