It is important to know what happened to the famous towns of #Ramayana like #Ayodhya, #Chitrakoot, #Kishkindha after all?
So that we also remember the atrocities against ourselves like the Jews…
🔸1 #Ayodhya :- In the capital of Shri Ram and Raghuvansh, it was attacked by Muslim invader Balban in the year 1270. Balban destroys all temples in Ayodhya, women and children auctioned in objectionable conditions at the intersection between the city where Ramrajya was founded. These temples were reconstructed by the queen of Indore Ahilyabai Holkar.
🔸2. #Ganga_River_Bore :- This was the bank near which Shri Ram killed Tadka and rescued the sages. At the time of 1760, when Ahmed Shah Abdali entered India and Indian Muslims helped him reach the river Ganges. Then Abdali cut the head of 1 thousand cows and flowed in the same river Ganga to burn the Marathas.
🔸3. #Chitrakoot :- Shri Ram stayed in Chitrakoot during exile which was captured by Alauddin Khilji in 1298. 5 thousand men killed, thousands of women sent to the Haram of Alauddin Khilji and temples destroyed. Ranoji Scindia rescued this city again in 1731.
🔸4. #Nasik: – The place where Laxman ji cut the nose of Shurpankha and which was the workplace of Shri Ram. It was attacked by Muhammad bin Tughlak, Tulgak set fire to a Shiva temple built by Lord Shri Ram in Nashik and killed for 12 days. Nashik residents were appealed to accept Islam or be ready to die. Later Sambhaji Maharaj, son of Chhatrapati Shivaji Maharaj re-established these temples.
🔸5. #Kishkindha: – State of Monkey Raj Maharaj Sugriva, which was called Vijaynagar Empire by moving forward. In 1565, Vijayanagar empire was defeated in the war of Talikota and Muslims burnt the whole state, you still search Hampi in Google, its huge residue will be seen today, which shows how grand India was before Muslims. But religious fire burned everything to ashes. Later the Yaduvanshi of Mysore rescued it again.
This is how our Ramayana era city was looted and rebuilt.
इराक में प्राप्त धनुर्धारी #श्रीराम और #हनुमान की प्रतिमा वर्षों से #पुरातत्त्ववेत्ताओं और #इतिहासकारों को आकृष्ट कर रही है। इस प्रतिमा का एक बड़ा चित्र #सुलयमानियाम्यूजियम (सलीम स्ट्रीट, सुलयमालिया) में प्रदर्शित है और आकर्षण का केन्द्र है। विदेशी पुरातत्त्ववेत्ताओं ने इस प्रतिमा को #अक्कडियनसाम्राज्य (2334-2154 ई.पू.) के सुमेरियन शासकों से सम्बद्ध किया है, लेकिन एक दृष्टि में यह श्रीराम और हनुमान ही प्रतीत होते हैं। यह प्रतिमा #बृहत्तर_भारत और #सुमेर के गहरे राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंधों का पुष्ट प्रमाण है।
यह कोई कवि-कल्पना नहीं है कि एक समय पूरे विश्व में हिन्दुओं का साम्राज्य और शासन था। यही कारण है कि आए दिन पुरातत्त्ववेत्ताओं को #पश्चिमीएशिया, #दक्षिणअमेरिका, #रूस, #ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में हिन्दू देवी-देवताओं की प्राचीन प्रतिमाएं, उत्खनन में प्राप्त हो रही
लगभग 1×1 मीटर आकार की यह विख्यात प्रतिमा #इराकईरान सीमा पर स्थित #कुर्दिस्तान जिले के सुलयमानिया नगर के दक्षिण-पश्चिम में #बेलुलादर्रे में ‘होरेन शेखान’ क्षेत्र के ‘दरबन्द-ए-बेुलला’ की चट्टान पर उत्कीर्ण है। इसका निर्देशांक 34°52’3.61″N, 45°44’2.77″E है।
जाने-माने ब्रिटिश_पुरातत्त्ववेत्ता सर चार्ल्स लिओनार्ड वूली (1880-1960) ने इराक के ‘उर’ क्षेत्र के उत्खनन के दौरान इस प्रतिमा का पता लगाया था।
पंचांग के अनुसार नवरात्रि का पर्व आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से आरंभ होगा, जो 17 अक्टूब को पड़ रही है. इस दिन सूर्य कन्या राशि में चंद्रमा तुला राशि में विराजमान रहेंगे। नवरात्रि के प्रथम दिन घटस्थापना का शुभ मुहूर्त प्रात: 6 बजकर 23 मिनट से प्रात: 10 बजकर 12 मिनट तक है।
नवरात्रि का तिथि वार पूजा कार्यक्रम इस प्रकार रहेगा-
17 अक्टूबर: प्रतिपदा घटस्थापना
18 अक्टूबर: द्वितीया मां ब्रह्मचारिणी पूजा
19 अक्टूबर: तृतीय मां चंद्रघंटा पूजा
20 अक्टूबर: चतुर्थी मां कुष्मांडा पूजा
21 अक्टूबर: पंचमी मां स्कंदमाता पूजा
22 अक्टूबर: षष्ठी मां कात्यायनी पूजा
23 अक्टूबर: सप्तमी मां कालरात्रि पूजा
24 अक्टूबर: अष्टमी मां महागौरी दुर्गा महा नवमी पूजा दुर्गा महा अष्टमी पूजा
25 अक्टूबर: नवमी मां सिद्धिदात्री नवरात्रि पारण विजय दशमी
नवरात्रि पर्व हिन्दू धर्म के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है। इस पावन अवसर पर माँ दुर्गा के नौ रूपों की आराधना की जाती है। इसलिए यह पर्व नौ दिनों तक मनाया जाता है। वेद-पुराणों में माँ दुर्गा को शक्ति का रूप माना गया है जो असुरों से इस संसार की रक्षा करती हैं। नवरात्र के समय माँ के भक्त उनसे अपने सुखी जीवन और समृद्धि की कामना करते हैं।
आइए जानते हैं माँ दुर्गा के नौ रूप कौन-कौन से हैं :-
1. माँ शैलपुत्री
2. माँ ब्रह्मचारिणी
3. माँ चंद्रघण्टा
4. माँ कूष्मांडा
5. माँ स्कंद माता
6. माँ कात्यायनी
7. माँ कालरात्रि
8. माँ महागौरी
9. माँ सिद्धिदात्री
सनातन धर्म में नवरात्र पर्व का बड़ा महत्व है कि यह एक साल में पाँच बार मनाया जाता है। हालाँकि इनमें चैत्र और शरद के समय आने वाली नवरात्रि को ही व्यापक रूप से मनाया जाता है। इस अवसर पर देश के कई हिस्सों में मेलों और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। माँ के भक्त भारत वर्ष में फैले माँ के शक्ति पीठों के दर्शन करने जाते हैं। वहीं शेष तीन नवरात्रियों को गुप्त नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। इनमें माघ गुप्त नवरात्रि, आषाढ़ गुप्त नवरात्रि और पौष नवरात्रि शामिल हैं। इन्हें देश के विभिन्न हिस्सों में सामान्य रूप से मनाया जाता है।
नवरात्रि पर्व का महत्व
यदि हम नवरात्रि शब्द का संधि विच्छेद करें तो ज्ञात होता है कि यह दो शब्दों के योग से बना है जिसमें पहला शब्द ‘नव’ और दूसरा शब्द ‘रात्रि’ है जिसका अर्थ है नौ रातें। नवरात्रि पर्व मुख्य रूप से भारत के उत्तरी राज्यों के अलावा गुजरात और पश्चिम बंगाल में बड़ी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर माँ के भक्त उनका आशीर्वाद पाने के लिए नौ दिनों का उपवास रखते हैं।
इस दौरान शराब, मांस, प्याज, लहसुन आदि चीज़ों का परहेज़ किया जाता है। नौ दिनों के बाद दसवें दिन व्रत पारण किया जाता है। नवरात्र के दसवें दिन को विजयादशमी या दशहरा के नाम से जाना जाता है। कहते हैं कि इसी दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध करके लंका पर विजय पायी थी।
नवरात्रि से जुड़ी परंपरा
भारत सहित विश्व के कई देशों में नवरात्रि पर्व को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भक्तजन घटस्थापना करके नौ दिनों तक माँ की आराधना करते हैं। भक्तों के द्वारा माँ का आशीर्वाद पाने के लिए भजन कीर्तन किया जाता है। नौ दिनों तक माँ की पूजा उनके अलग अलग रूपों में की जाती है। जैसे –
नवरात्रि का पहला दिन माँ शैलपुत्री को होता है समर्पित
नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। माँ पार्वती माता शैलपुत्री का ही रूप हैं और हिमालय राज की पुत्री हैं। माता नंदी की सवारी करती हैं। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल का फूल है। नवरात्रि के पहले दिन लाल रंग का महत्व होता है। यह रंग साहस, शक्ति और कर्म का प्रतीक है। नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना पूजा का भी विधान है।
नवरात्रि का दूसरा दिन माँ ब्रह्मचारिणी के लिए है
नवरात्रि का दूसरा दिन माता ब्रह्मचारिणी को समर्पित होता है। माता ब्रह्मचारिणी माँ दुर्गा का दूसरा रूप हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब माता पार्वती अविवाहित थीं तब उनको ब्रह्मचारिणी के रूप में जाना जाता था। यदि माँ के इस रूप का वर्णन करें तो वे श्वेत वस्त्र धारण किए हुए हैं और उनके एक हाथ में कमण्डल और दूसरे हाथ में जपमाला है। देवी का स्वरूप अत्यंत तेज़ और ज्योतिर्मय है। जो भक्त माता के इस रूप की आराधना करते हैं उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन का विशेष रंग नीला है जो शांति और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है।
नवरात्रि के तीसरे दिन माँ चंद्रघण्टा की होती है पूजा
नवरात्र के तीसरे दिन माता चंद्रघण्टा की पूजा की जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि माँ पार्वती और भगवान शिव के विवाह के दौरान उनका यह नाम पड़ा था। शिव के माथे पर आधा चंद्रमा इस बात का साक्षी है। नवरात्र के तीसरे दिन पीले रंग का महत्व होता है। यह रंग साहस का प्रतीक माना जाता है।
नवरात्रि के चौथे दिन माँ कुष्माण्डा की होती है आराधना
नवरात्रि के चौथे दिन माता कुष्माडा की आराधना होती है। शास्त्रों में माँ के रूप का वर्णन करते हुए यह बताया गया है कि माता कुष्माण्डा शेर की सवारी करती हैं और उनकी आठ भुजाएं हैं। पृथ्वी पर होने वाली हरियाली माँ के इसी रूप के कारण हैं। इसलिए इस दिन हरे रंग का महत्व होता है।
नवरात्रि का पाँचवां दिन माँ स्कंदमाता को है समर्पित
नवरात्र के पाँचवें दिन माँ स्कंदमाता का पूजा होता है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार भगवान कार्तिकेय का एक नाम स्कंद भी है। स्कंद की माता होने के कारण माँ का यह नाम पड़ा है। उनकी चार भुजाएँ हैं। माता अपने पुत्र को लेकर शेर की सवारी करती है। इस दिन धूसर (ग्रे) रंग का महत्व होता है।
नवरात्रि के छठवें दिन माँ कात्यायिनी की होती है पूजा
माँ कात्यायिनी दुर्गा जी का उग्र रूप है और नवरात्रि के छठे दिन माँ के इस रूप को पूजा जाता है। माँ कात्यायिनी
नवरात्र के सातवें दिसाहस का प्रतीक हैं। वे शेर पर सवार होती हैं और उनकी चार भुजाएं हैं। इस दिन केसरिया रंग का महत्व होता है।
नवरात्रि के सातवें दिन करते हैं माँ कालरात्रि की पूजा
माँ के उग्र रूप माँ कालरात्रि की आराधना होती है। पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि जब माँ पार्वती ने शुंभ-निशुंभ नामक दो राक्षसों का वध किया था तब उनका रंग काला हो गया था। हालाँकि इस दिन सफेद रंग का महत्व होता है।
नवरात्रि के आठवें दिन माँ महागौरी की होती है आराधना
महागौरी की पूजा नवरात्रि के आठवें दिन होती है। माता का यह रूप शांति और ज्ञान की देवी का प्रतीक है। इस दिन गुलाबी रंग का महत्व होता है जो जीवन में सकारात्मकता का प्रतीक होता है।
नवरात्रि का अंतिम दिन माँ सिद्धिदात्री के लिए है समर्पित
नवरात्रि के आखिरी दिन माँ सिद्धिदात्री की आराधना होती है। ऐसा कहा जाता है कि जो कोई माँ के इस रूप की आराधना सच्चे मन से करता है उसे हर प्रकार की सिद्धि प्राप्त होती है। माँ सिद्धिदात्री कमल के फूल पर विराजमान हैं और उनकी चार भुजाएँ हैं।
नवरात्रि के लिए पूजा सामग्री
● माँ दुर्गा की प्रतिमा अथवा चित्र
● लाल चुनरी
● आम की पत्तियाँ
● चावल
● दुर्गा सप्तशती की किताब
● लाल कलावा
● गंगा जल
● चंदन
● नारियल
● कपूर
● जौ के बीच
● मिट्टी का बर्तन
● गुलाल
● सुपारी
● पान के पत्ते
● लौंग
● इलायची
नवरात्रि पूजा विधि
● सुबह जल्दी उठें और स्नान करने के बाद स्वच्छ कपड़े पहनें
● ऊपर दी गई पूजा सामग्री को एकत्रित करें
● पूजा की थाल सजाएँ
● माँ दर्गा की प्रतिमा को लाल रंग के वस्त्र में रखें
● मिट्टी के बर्तन में जौ के बीज बोयें और नवमी तक प्रति दिन पानी का छिड़काव करें
● पूर्ण विधि के अनुसार शुभ मुहूर्त में कलश को स्थापित करें। इसमें पहले कलश को गंगा जल से भरें, उसके मुख पर आम की पत्तियाँ लगाएं और उपर नारियल रखें। कलश को लाल कपड़े से लपेंटे और कलावा के माध्यम से उसे बाँधें। अब इसे मिट्टी के बर्तन के पास रख दें
● फूल, कपूर, अगरबत्ती, ज्योत के साथ पंचोपचार पूजा करें
● नौ दिनों तक माँ दुर्गा से संबंधित मंत्र का जाप करें और माता का स्वागत कर उनसे सुख-समृद्धि की कामना करें
● अष्टमी या नवमी को दुर्गा पूजा के बाद नौ कन्याओं का पूजन करें और उन्हें तरह-तरह के व्यंजनों (पूड़ी, चना, हलवा) का भोग लगाएं
● आखिरी दिन दुर्गा के पूजा के बाद घट विसर्जन करें इसमें माँ की आरती गाएं, उन्हें फूल, चावल चढ़ाएं और बेदी से कलश को उठाएं
भारत में इस तरह मनाया जाता है नवरात्रि का पावन पर्व
नवरात्रि के पावन अवसर पर माँ दुर्गा के लाखों भक्त उनकी हृदय से पूजा-आराधना करते हैं। ताकि उन्हें उनकी श्रद्धा का फल माँ के आशीर्वाद के रूप में मिल सके। नवरात्रि के दौरान माँ के भक्त अपने घरों में का माँ का दरवार सजाते हैं। उसमें माता के विभिन्न रूपों की प्रतिमा या चित्र को रखा जाता है। नवरात्रि के दसवें दिन माँ की प्रतिमा को बड़ी धूमधाम के साथ जल में प्रवाह करते हैं। पश्चिम बंगाल में सिंदूर खेला की प्रथा चलती है। जिसमें महिलाएँ एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। गुजरात में गरबा नृत्य का आयोजन किया जाता है। जिसमें लोग डांडिया नृत्य करते हैं। उत्तर भारत में नवरात्रि के समय जगह-जगह रामलीला का आयोजन होता है और दसवें दिन रावण के बड़े-बड़े पुतले बनाकर उन्हें फूंका जाता है।
नवरात्रि से संबंधित पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि महिषासुर नामक राक्षस ब्रह्मा जी का बड़ा भक्त था। उसकी भक्ति को देखकर शृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी प्रसन्न हो गए और उसे यह वरदान दे दिया कि कोई देव, दानव या पुरुष उसे मार नहीं पाएगा। इस वरदान को पाकर महिषासुर के अंदर अहंकार की ज्वाला भड़क उठी। वह तीनों लोकों में अपना आतंक मचाने लगा।
इस बात से तंग आकर ब्रह्मा, विष्णु, महेश के साथ सभी देवताओं ने मिलकर माँ शक्ति के रूप में दुर्गा को जन्म दिया। कहते हैं कि माँ दुर्गा और महिषासुर के बीच नौ दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ और दसवें दिन माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया। इस दिन को अच्छाई पर बुराई की जीत के रूप में मनाया जाता है।
एक दूसरी कथा के अनुसार, त्रेता युग में भगवान राम ने लंका पर आक्रमण करने से पहले शक्ति की देवी माँ भगवती की आराधना की थी। उन्होंने नौ दिनों तक माता की पूजा की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर माँ स्वयं उनके सामने प्रकट हो गईं। उन्होंने श्रीराम को विजय प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। दसवें दिन भगवान राम ने अधर्मी रावण को परास्त कर उसका वध कर लंका पर विजय प्राप्त की। इस दिन को विजय दशमी के रूप में जाना जाता है।
Revealed Vedic scriptures is original knowledge of this world but at present many Indians by believing in Aryan invasion theory, false western theories like Darwin evolution theory which Darwin himself could not prove and still remains challenged, are giving discredit to Vedic Sages. After independence atleast Indians should start believing in their culture & civilization then what western scientists say.
Perhaps Indians are ignorant about Puranic Manvantar history which calculates cyclical time as per 4 Yugas, Mahayugas, Manvantar & Kalpa and which disapproves evolution of humans from Apes which is a western Adamic-Abrahamic concept.
Infact advanced Aryan culture originated from the start of Bramha’s day during स्वयंभुव मनु or मन्वंतर in Northern India known as the land of ब्रम्हावर्त were the Vedic literatures were revealed to the Vedic Sages as is mentioned in Puranic history which are real history and not mythology.
The present 7th विवस्वान मन्वंतर started 120 million years ago and we are living now in 28 महायुग 5110 कलियुग year.
Vedic Aryans were never naked. Man was naked is western concept due to Out of Africa theory or Adamic history popular in West Asia in the dominant religion of Christianity and Islam. Sanatan Vedic Dharma God revealed Vedas to Aryans and God himself descended in various Avatars to protect Dharma from miscreants in various Yugas. So God cannot be created by humans.
Manu is progenitor of mankind which is संस्कृत word from which english word Man or civilized human or मनुष्य or मानव having evovled mind originated in India known as Caucasoid or Aryan race in India while the Black race people originated in Africa and Mongols originated in East Asia.
Even if we think that we know everything, we shouldn’t feel reluctant in approaching our masters and learn the secrets of righteousness and the inner reality from them. This is what Lord Rama teaches us by doing it himself. The depth of the Vedic teachings is such that every time a person comes back to it, however a great scholar he might be, he receives a new and fresh insight into his own life through them.
Picture: Lord Rama seated at the lotus feet of his master MaharshiVasishtha.
भले ही हम यह सोचते हों कि हमें तो सब कुछ पता है, फिर भी गुरुजनों की सन्निधि में जा कर और उनके चरणों में बैठ कर धर्म तथा अध्यात्म के गुह्य रहस्यों का ज्ञान प्राप्त करते ही रहना चाहिये। स्वयं भगवान् राम सर्वज्ञ होते हुए भी केवल बाल्यावस्था में ही अध्ययन करने के लिये गुरुजनों के पास नहीं गये, अपितु वनवास से वापस आकर अयोध्यापति बन जाने के उपरान्त भी गुरुजनों की सन्निधि में बैठ कर उनके उपदेश सुना करते थे। गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं – “बेद पुरान बसिष्ट बखानहिं। सुनहिं राम जद्यपि सब जानहिं” (श्रीरामचरितमानस उत्तरकाण्ड २५.१) अर्थात् ‘महर्षि वसिष्ठ जी वेद और पुराणों की कथायें वर्णन करते हैं और श्री राम जी सुनते हैं, यद्यपि वे सब जानते हैं’। वास्तविकता यह है कि हमारे प्राचीन वेदों के मन्त्रों का गाम्भीर्य ही कुछ ऐसा है कि चाहें बड़े से बड़ा विद्वान ही क्यों न हो, हर बार जब वह उन्हें सुनता है और उनकी गहराई में प्रवेश करने का प्रयत्न करता है, तो उसमें से अपने जीवन व आन्तरिक विकास के लिये ज्ञान व अनुभूति के कोई न कोई अमूल्य मोती लेकर ही लौटता है। अतः इनका अध्ययन व श्रवण करने के लिये सदैव ज्ञानी महापुरुषों की सन्निधि में जाना ही चाहिये; इसी में ही अपना एवं समाज का कल्याण है। ॐ
चित्र: अपने गुरुदेव महर्षि वसिष्ठ के चरणों में बैठे भगवान् श्री राम॥
SHRI RAMA …WAS REAL KING …WHO LIVED AS EXAMPLE OF DHARMA …
Sri Rama was on this earth in 5114 BCE +/- 26,000 years before that or the similar period before that or the one before and so on and so forth..
A solution to the apparent mismatch of dates can be found if we realize that because of a phenomenon known as the ‘Precession of Equinoxes’, stars as visualized from Earth, regain the same positions every 26,000 years!
Outside India, the millenia old story of Rama is still sung by people all over Asia. While traveling to different countries in this part of the world, there are many versions that are even older than the regional ones in India!!
In China, collection of Jatak stories relating to various events of Ramayana, belonging to 251 AD were compiled by Kang Seng Hua based on the Buddhist texts mentioned earlier.
Kumardasa, who ruled Srilanka in 617 BCE wrote the text called ‘Janakiharan’ which is the oldest Sanskrit literature available in Sri lanka.
Oldest written version of Ramayana, in Nepal is from 1075 BCE.
Yama Zatdaw in Myanmar is considered the National epic and is a Burmese version of the story of Rama which has again given theme to dance and art forms including tapestries and puppets.(In fact Burmese people even stress that it is the true history of their land).
Hikayat Seri Rama in Malaysia makes Dashrath the great-grandson of Adam, the first man! (which is not too far from the truth as both Dashrath and Manu, the First Man were from the Suryavanshi/Solar dynasty!),
In the Phra Lak Phra Lam of Laos, Buddha is regarded as an incarnation of Rama (again not completely false as both are incarnations of Lord Vishnu!).
Reamker, is the most famous story of Khmer Literature of Cambodia and is the source of classical dance, theater, poetry and of course the famous sculptures of Angkor Wat. Various rock inscriptions belonging to about 700 CE are also found in the Khmer region of Cambodia.
Maradia Lawana in the Phillipines is based on the Ramayana,
Ramakavaca in Bali is a major source of moral and spiritual guidance for the island and forms the basic story line of Balinese traditional dance,
Kakawin Ramayana in Java, Indonesia (9th century CE) is a mixture of Sanskrit and Kawi languages and is the basis of traditional Indonesian ballet and performances that are famous the world over.
Ramakien in Thailand is again considered the National epic and adds an element of incest to the story by making Sita the daughter of Ravan and Mandodari who is thrown away in the Sea as she is prophesied to bring destruction to Ravan’s Kingdom!!