Battle of Colachel-King Martand Verma

Time Calculation in Padm Puran, Narsing Puran and Sri Bhagvatum

Sanatan Hindu time calculation

कालगणना
मित्रों आज मैं आपको मनुष्यों के समयसीमा और देवताओं के समयसीमा में अंतर बताने का प्रयास करूंगा। हालांकि इसका मेरे पास कोई शास्त्र प्रमाण नहीं है परन्तु शास्त्रों में वर्णित समय व हमारे द्वारा बोले गए संकल्प का आधार लेकर ही प्रयास किया है।

घंटा मिनट वैज्ञानिक समय है, इसलिए मैं इसी से शुरुआत करूँगा। जैसा कि आप जानते हैं, 60 सेकेंड का 1 मिनिट, 60 मिनिट का 1 घंटा होता है दिन और रात्रि को 24 घंटे में बांटा गया है। 3 घंटे का 1 प्रहर होता है इसलिए 4 प्रहर रात्रि के और 4 प्रहर दिन के होते हैं। 7 दिन को सप्ताह और 15 दिन को पक्ष बताया गया है। दो पक्ष का 1 माह और 12 माह का 1 वर्ष होता है। 360 वर्ष का 1 दिव्यवर्ष यानी देवताओं का एक वर्ष होता है।

जिस प्रकार 30 दिन को महीना कहते हैं 12 महीने को वर्ष कहते हैं उसी प्रकार 432000 वर्ष को कलियुग कहा गया। दो कलियुग मिलकर 1 द्वापरयुग होता है अर्थात द्वापर 864000 वर्ष का होता है। इसी प्रकार से 17280000 वर्ष का त्रेता युग और 3456000 वर्ष का सतयुग होता है।

कलियुग में मनुष्य की आयु प्रमाण 100 वर्ष और कद 7 फुट की होती है। द्वापरयुग में मनुष्य की आयु 1000 वर्ष और कद 14 फुट की होती है। त्रेता में मनुष्य की आयु 10000 वर्ष और कद 21 फुट की होती है। सतयुग में मनुष्य की आयु 100000 वर्ष और कद 28 फुट की बताई गई है।

भागवत कथा में आपने सुना होगा कि त्रेतायुग के सूर्यवंशी राजा रेवत अपनी कन्या का विवाह करना चाहते थे परंतु पृथ्वी में बहुत खोजने के बाद भी उन्हें अपनी कन्या के लिए योग्य पुरुष नहीं मिला जिस कारण वे अपनी कन्या को लेकर ब्रह्माजी के पास गए, उस समय ब्रह्माजी की सभा में वेदपाठ हो रहा था जिस कारण राजा रेवत की कुछ समय प्रतीक्षा करना पड़ा। जब राजा रेवत ब्रह्माजी के पास पहुंचे और अपनी समस्या बताई तब ब्रह्माजी ने बताया कि आप जहां से आये हो वहां अब आपका वंश ही समाप्त हो गया। क्योंकि अब वहां पर त्रेतायुग समाप्त होकर द्वापरयुग का अंतिम चरण चल रहा है। इस समय भगवान विष्णु श्रीकृष्ण के रूप में अवतरित होकर लीलाएं कर रहे हैं। आप अब तुरंत पृथ्वी पर जाइये और श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी के साथ अपनी कन्या का विवाह करिए। तब राजा रेवत अपनी कन्या को लेकर पृथ्वी पर आए और बलराम जी के साथ रेवती जी का विवाह किया। उस समय बलराम जी 14 फुट के थे और रेवती जी 21 फुट की थीं तब बलराम जी ने अपने हल से रेवती जी को छोटा किया यानी 21 फुट से सीधे 14 फुट का बना दिया।

इसी प्रकार कलियुग की अपेक्षा द्वापर युग में मनुष्य का बल, तेज, गुण, स्मरण शक्ति आदि सब कुछ दो गुना ज्यादा होता है वैसे प्राकृति भी कलियुग की अपेक्षा द्वापरयुग में ज्यादा शुद्ध रहती है। भूमि भी दो गुना ज्यादा उपजाऊ होती है। इसी प्रकार द्वापर से दो गुना ज्यादा त्रेतायुग और त्रेता से दो गुना ज्यादा सतयुग की शक्तियों को समझें।
इस तरह से जब क्रमशः सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग व्यतीत होता है तब उसे 1 चतुर्युगी कहते है। 71 चतुर्युगी जब व्यतीत होता है तब 1 मन्वंतर होता है। 14 मन्वंतर का 1 कल्प होता है। इस तरह से जब 14 मन्वन्तर बीत जाते हैं तब ब्रह्मा जी का एक दिन होता है। पुनः 14 मन्वंतर बीतने पर ब्रह्मा जी की एक रात्रि पूरी होती है।

ब्राह्मण पूजा करते समय जो संकल्प पढ़ते हैं आइए अब उस पर गौर करें।
@संकल्प के अनुसार@

इस समय जो कल्प चल रहा है उसका नाम श्वेतवराह कल्प उसमे भी यह ब्रह्मा जी का द्वितीय परार्ध है अर्थात ब्रह्मा जी इस समय 51 वें वर्ष में प्रवेश कर चुके है और कौन सा मन्वंतर है तो 14 मन्वंतरों में यह 7 वां वैवस्वत मन्वंतर है, मन्वंतर एक पद है इस समय का द्रष्टा होता है उसे मनु कहा जाता है। तो विवश्वान सूर्य के पुत्र जो वैवश्वत है यही इस काल खंड के रक्षक हैं। तो 14 मन्वंतरों में अलग अलग 14 मनु निर्धारित किये गए हैं। अभी जो है ये 7 वें वैवस्वतमनु हैं। तो इस मन्वंतर में यह कौन सा युग है। क्योंकि 1 मन्वंतर में 71 चतुर्युगी होते हैं तो अश्टाविंशित्त मे युगे कलियुगे कलि प्रथम चरणे। यह 28 वां चतुर्युगी है जिसमे सतयुग त्रेता द्वापर बीत गया अभी कलियुग चल रहा है वह भी कलियुग का यह प्रथम चरण है। अभी कलियुग व्यतीत हुए 5127 वर्ष पूर्ण हो गया।

विक्रम संवत 2078 के चैत्रमास शुक्लपक्ष प्रतिपदा से 5128वां वर्ष शुरू हो गया। मनु के ही तरह इन्द्र भी मरणधर्मा है, इन्द्र की आयु 1 चतुर्युगी की होती है इस समय जो इन्द्र विराजमान हैं उनका नाम शक्र है। और कलियुग समाप्ति के बाद जब 29 चतुर्युगी प्रारम्भ होगा तब प्रह्लाद के पौत्र बलि को इंद्र पद में नियुक्त किया जाएगा।

After Birth questions answered

पुनर्जन्म से सम्बंधित चालीस प्रश्नों को उत्तर सहित पढ़े?????

(1) प्रश्न :- पुनर्जन्म किसको कहते हैं ?

उत्तर :- जब जीवात्मा एक शरीर का त्याग करके किसी दूसरे शरीर में जाती है तो इस बार बार जन्म लेने की क्रिया को पुनर्जन्म कहते हैं ।

(2) प्रश्न :- पुनर्जन्म क्यों होता है ?

उत्तर :- जब एक जन्म के अच्छे बुरे कर्मों के फल अधुरे रह जाते हैं तो उनको भोगने के लिए दूसरे जन्म आवश्यक हैं ।

(3) प्रश्न :- अच्छे बुरे कर्मों का फल एक ही जन्म में क्यों नहीं मिल जाता ? एक में ही सब निपट जाये तो कितना अच्छा हो ?

उत्तर :- नहीं जब एक जन्म में कर्मों का फल शेष रह जाए तो उसे भोगने के लिए दूसरे जन्म अपेक्षित होते हैं ।

(4) प्रश्न :- पुनर्जन्म को कैसे समझा जा सकता है ?

उत्तर :- पुनर्जन्म को समझने के लिए जीवन और मृत्यु को समझना आवश्यक है । और जीवन मृत्यु को समझने के लिए शरीर को समझना आवश्यक है ।

(5) प्रश्न :- शरीर के बारे में समझाएँ ?

उत्तर :- हमारे शरीर को निर्माण प्रकृति से हुआ है ।
जिसमें मूल प्रकृति ( सत्व रजस और तमस ) से प्रथम बुद्धि तत्व का निर्माण हुआ है ।
बुद्धि से अहंकार ( बुद्धि का आभामण्डल ) ।
अहंकार से पांच ज्ञानेन्द्रियाँ ( चक्षु, जिह्वा, नासिका, त्वचा, श्रोत्र ), मन ।
पांच कर्मेन्द्रियाँ ( हस्त, पाद, उपस्थ, पायु, वाक् ) ।

शरीर की रचना को दो भागों में बाँटा जाता है ( सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर ) ।

(6) प्रश्न :- सूक्ष्म शरीर किसको बोलते हैं ?

उत्तर :- सूक्ष्म शरीर में बुद्धि, अहंकार, मन, ज्ञानेन्द्रियाँ । ये सूक्ष्म शरीर आत्मा को सृष्टि के आरम्भ में जो मिलता है वही एक ही सूक्ष्म शरीर सृष्टि के अंत तक उस आत्मा के साथ पूरे एक सृष्टि काल ( ४३२००००००० वर्ष ) तक चलता है । और यदि बीच में ही किसी जन्म में कहीं आत्मा का मोक्ष हो जाए तो ये सूक्ष्म शरीर भी प्रकृति में वहीं लीन हो जायेगा ।

(7) प्रश्न :- स्थूल शरीर किसको कहते हैं ?

उत्तर :- पंच कर्मेन्द्रियाँ ( हस्त, पाद, उपस्थ, पायु, वाक् ) , ये समस्त पंचभौतिक बाहरी शरीर ।

(8) प्रश्न :- जन्म क्या होता है ?

उत्तर :- जीवात्मा का अपने करणों ( सूक्ष्म शरीर ) के साथ किसी पंचभौतिक शरीर में आ जाना ही जन्म कहलाता है ।

(9) प्रश्न :- मृत्यु क्या होती है ?

उत्तर :- जब जीवात्मा का अपने पंचभौतिक स्थूल शरीर से वियोग हो जाता है, तो उसे ही मृत्यु कहा जाता है । परन्तु मृत्यु केवल सथूल शरीर की होती है , सूक्ष्म शरीर की नहीं । सूक्ष्म शरीर भी छूट गया तो वह मोक्ष कहलाएगा मृत्यु नहीं । मृत्यु केवल शरीर बदलने की प्रक्रिया है, जैसे मनुष्य कपड़े बदलता है । वैसे ही आत्मा शरीर भी बदलता है ।

(10) प्रश्न :- मृत्यु होती ही क्यों है ?

उत्तर :- जैसे किसी एक वस्तु का निरन्तर प्रयोग करते रहने से उस वस्तु का सामर्थ्य घट जाता है, और उस वस्तु को बदलना आवश्यक हो जाता है, ठीक वैसे ही एक शरीर का सामर्थ्य भी घट जाता है और इन्द्रियाँ निर्बल हो जाती हैं । जिस कारण उस शरीर को बदलने की प्रक्रिया का नाम ही मृत्यु है ।

(11) प्रश्न :- मृत्यु न होती तो क्या होता ?

उत्तर :- तो बहुत अव्यवस्था होती । पृथ्वी की जनसंख्या बहुत बढ़ जाती । और यहाँ पैर धरने का भी स्थान न होता ।

(12) प्रश्न :- क्या मृत्यु होना बुरी बात है ?

उत्तर :- नहीं, मृत्यु होना कोई बुरी बात नहीं ये तो एक प्रक्रिया है शरीर परिवर्तन की ।

(13) प्रश्न :- यदि मृत्यु होना बुरी बात नहीं है तो लोग इससे इतना डरते क्यों हैं ?

उत्तर :- क्योंकि उनको मृत्यु के वैज्ञानिक स्वरूप की जानकारी नहीं है । वे अज्ञानी हैं । वे समझते हैं कि मृत्यु के समय बहुत कष्ट होता है । उन्होंने वेद, उपनिषद, या दर्शन को कभी पढ़ा नहीं वे ही अंधकार में पड़ते हैं और मृत्यु से पहले कई बार मरते हैं ।

(14) प्रश्न :- तो मृत्यु के समय कैसा लगता है ? थोड़ा सा तो बतायें ?

उत्तर :- जब आप बिस्तर में लेटे लेटे नींद में जाने लगते हैं तो आपको कैसा लगता है ?? ठीक वैसा ही मृत्यु की अवस्था में जाने में लगता है उसके बाद कुछ अनुभव नहीं होता । जब आपकी मृत्यु किसी हादसे से होती है तो उस समय आमको मूर्छा आने लगती है, आप ज्ञान शून्य होने लगते हैं जिससे की आपको कोई पीड़ा न हो । तो यही ईश्वर की सबसे बड़ी कृपा है कि मृत्यु के समय मनुष्य ज्ञान शून्य होने लगता है और सुषुुप्तावस्था में जाने लगता है ।

(15) प्रश्न :- मृत्यु के डर को दूर करने के लिए क्या करें ?

उत्तर :- जब आप वैदिक आर्ष ग्रन्थ ( उपनिषद, दर्शन आदि ) का गम्भीरता से अध्ययन करके जीवन,मृत्यु, शरीर, आदि के विज्ञान को जानेंगे तो आपके अन्दर का, मृत्यु के प्रति भय मिटता चला जायेगा और दूसरा ये की योग मार्ग पर चलें तो स्वंय ही आपका अज्ञान कमतर होता जायेगा और मृत्यु भय दूर हो जायेगा । आप निडर हो जायेंगे । जैसे हमारे बलिदानियों की गाथायें आपने सुनी होंगी जो राष्ट्र की रक्षा के लिये बलिदान हो गये । तो आपको क्या लगता है कि क्या वो ऐसे ही एक दिन में बलिदान देने को तैय्यार हो गये थे ? नहीं उन्होने भी योगदर्शन, गीता, साँख्य, उपनिषद, वेद आदि पढ़कर ही निर्भयता को प्राप्त किया था । योग मार्ग को जीया था, अज्ञानता का नाश किया था ।

महाभारत के युद्ध में भी जब अर्जुन भीष्म, द्रोणादिकों की मृत्यु के भय से युद्ध की मंशा को त्याग बैठा था तो योगेश्वर कृष्ण ने भी तो अर्जुन को इसी सांख्य, योग, निष्काम कर्मों के सिद्धान्त के माध्यम से जीवन मृत्यु का ही तो रहस्य समझाया था और यह बताया कि शरीर तो मरणधर्मा है ही तो उसी शरीर विज्ञान को जानकर ही अर्जुन भयमुक्त हुआ । तो इसी कारण तो वेदादि ग्रन्थों का स्वाध्याय करने वाल मनुष्य ही राष्ट्र के लिए अपना शीश कटा सकता है, वह मृत्यु से भयभीत नहीं होता , प्रसन्नता पूर्वक मृत्यु को आलिंगन करता है ।

(16) प्रश्न :- किन किन कारणों से पुनर्जन्म होता है ?

उत्तर :- आत्मा का स्वभाव है कर्म करना, किसी भी क्षण आत्मा कर्म किए बिना रह ही नहीं सकता । वे कर्म अच्छे करे या फिर बुरे, ये उसपर निर्भर है, पर कर्म करेगा अवश्य । तो ये कर्मों के कारण ही आत्मा का पुनर्जन्म होता है । पुनर्जन्म के लिए आत्मा सर्वथा ईश्वराधीन है ।

(17) प्रश्न :- पुनर्जन्म कब कब नहीं होता ?

उत्तर :- जब आत्मा का मोक्ष हो जाता है तब पुनर्जन्म नहीं होता है ।

(18) प्रश्न :- मोक्ष होने पर पुनर्जन्म क्यों नहीं होता ?

उत्तर :- क्योंकि मोक्ष होने पर स्थूल शरीर तो पंचतत्वों में लीन हो ही जाता है, पर सूक्ष्म शरीर जो आत्मा के सबसे निकट होता है, वह भी अपने मूल कारण प्रकृति में लीन हो जाता है ।

(19) प्रश्न :- मोक्ष के बाद क्या कभी भी आत्मा का पुनर्जन्म नहीं होता ?

उत्तर :- मोक्ष की अवधि तक आत्मा का पुनर्जन्म नहीं होता । उसके बाद होता है ।

(20) प्रश्न :- लेकिन मोक्ष तो सदा के लिए होता है, तो फिर मोक्ष की एक निश्चित अवधि कैसे हो सकती है ?

उत्तर :- सीमित कर्मों का कभी असीमित फल नहीं होता । यौगिक दिव्य कर्मों का फल हमें ईश्वरीय आनन्द के रूप में मिलता है, और जब ये मोक्ष की अवधि समाप्त होती है तो दुबारा से ये आत्मा शरीर धारण करती है ।

(21) प्रश्न :- मोक्ष की अवधि कब तक होती है ?

उत्तर :- मोक्ष का समय ३१ नील १० खरब ४० अरब वर्ष है, जब तक आत्मा मुक्त अवस्था में रहती है ।

(22) प्रश्न :- मोक्ष की अवस्था में स्थूल शरीर या सूक्ष्म शरीर आत्मा के साथ रहता है या नहीं ?

उत्तर :- नहीं मोक्ष की अवस्था में आत्मा पूरे ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाता रहता है और ईश्वर के आनन्द में रहता है, बिलकुल ठीक वैसे ही जैसे कि मछली पूरे समुद्र में रहती है । और जीव को किसी भी शरीर की आवश्यक्ता ही नहीं होती।

(23) प्रश्न :- मोक्ष के बाद आत्मा को शरीर कैसे प्राप्त होता है ?

उत्तर :- सबसे पहला तो आत्मा को कल्प के आरम्भ ( सृष्टि आरम्भ ) में सूक्ष्म शरीर मिलता है फिर ईश्वरीय मार्ग और औषधियों की सहायता से प्रथम रूप में अमैथुनी जीव शरीर मिलता है, वो शरीर सर्वश्रेष्ठ मनुष्य या विद्वान का होता है जो कि मोक्ष रूपी पुण्य को भोगने के बाद आत्मा को मिला है । जैसे इस वाली सृष्टि के आरम्भ में चारों ऋषि विद्वान ( वायु , आदित्य, अग्नि , अंगिरा ) को मिला जिनको वेद के ज्ञान से ईश्वर ने अलंकारित किया । क्योंकि ये ही वो पुण्य आत्मायें थीं जो मोक्ष की अवधि पूरी करके आई थीं ।

(24) प्रश्न :- मोक्ष की अवधि पूरी करके आत्मा को मनुष्य शरीर ही मिलता है या जानवर का ?

उत्तर :- मनुष्य शरीर ही मिलता है ।

(25) प्रश्न :- क्यों केवल मनुष्य का ही शरीर क्यों मिलता है ? जानवर का क्यों नहीं ?

उत्तर :- क्योंकि मोक्ष को भोगने के बाद पुण्य कर्मों को तो भोग लिया , और इस मोक्ष की अवधि में पाप कोई किया ही नहीं तो फिर जानवर बनना सम्भव ही नहीं , तो रहा केवल मनुष्य जन्म जो कि कर्म शून्य आत्मा को मिल जाता है ।

(26) प्रश्न :- मोक्ष होने से पुनर्जन्म क्यों बन्द हो जाता है ?

उत्तर :- क्योंकि योगाभ्यास आदि साधनों से जितने भी पूर्व कर्म होते हैं ( अच्छे या बुरे ) वे सब कट जाते हैं । तो ये कर्म ही तो पुनर्जन्म का कारण हैं, कर्म ही न रहे तो पुनर्जन्म क्यों होगा ??

(27) प्रश्न :- पुनर्जन्म से छूटने का उपाय क्या है ?

उत्तर :- पुनर्जन्म से छूटने का उपाय है योग मार्ग से मुक्ति या मोक्ष का प्राप्त करना ।

(28) प्रश्न :- पुनर्जन्म में शरीर किस आधार पर मिलता है ?

उत्तर :- जिस प्रकार के कर्म आपने एक जन्म में किए हैं उन कर्मों के आधार पर ही आपको पुनर्जन्म में शरीर मिलेगा ।

(29) प्रश्न :- कर्म कितने प्रकार के होते हैं ?

उत्तर :- मुख्य रूप से कर्मों को तीन भागों में बाँटा गया है :- सात्विक कर्म , राजसिक कर्म , तामसिक कर्म ।

(१) सात्विक कर्म :- सत्यभाषण, विद्याध्ययन, परोपकार, दान, दया, सेवा आदि ।

(२) राजसिक कर्म :- मिथ्याभाषण, क्रीडा, स्वाद लोलुपता, स्त्रीआकर्षण, चलचित्र आदि ।

(३) तामसिक कर्म :- चोरी, जारी, जूआ, ठग्गी, लूट मार, अधिकार हनन आदि ।

और जो कर्म इन तीनों से बाहर हैं वे दिव्य कर्म कलाते हैं, जो कि ऋषियों और योगियों द्वारा किए जाते हैं । इसी कारण उनको हम तीनों गुणों से परे मानते हैं । जो कि ईश्वर के निकट होते हैं और दिव्य कर्म ही करते हैं ।

(30) प्रश्न :- किस प्रकार के कर्म करने से मनुष्य योनि प्राप्त होती है ?

उत्तर :- सात्विक और राजसिक कर्मों के मिलेजुले प्रभाव से मानव देह मिलती है , यदि सात्विक कर्म बहुत कम है और राजसिक अधिक तो मानव शरीर तो प्राप्त होगा परन्तु किसी नीच कुल में , यदि सात्विक गुणों का अनुपात बढ़ता जाएगा तो मानव कुल उच्च ही होता जायेगा । जिसने अत्यधिक सात्विक कर्म किए होंगे वो विद्वान मनुष्य के घर ही जन्म लेगा ।

(31) प्रश्न :- किस प्रकार के कर्म करने से आत्मा जीव जन्तुओं के शरीर को प्राप्त होता है ?

उत्तर :- तामसिक और राजसिक कर्मों के फलरूप जानवर शरीर आत्मा को मिलता है । जितना तामसिक कर्म अधिक किए होंगे उतनी ही नीच योनि उस आत्मा को प्राप्त होती चली जाती है । जैसे लड़ाई स्वभाव वाले , माँस खाने वाले को कुत्ता, गीदड़, सिंह, सियार आदि का शरीर मिल सकता है , और घोर तामसिक कर्म किए हुए को साँप, नेवला, बिच्छू, कीड़ा, काकरोच, छिपकली आदि । तो ऐसे ही कर्मों से नीच शरीर मिलते हैं और ये जानवरों के शरीर आत्मा की भोग योनियाँ हैं ।

(32) प्रश्न :- तो क्या हमें यह पता लग सकता है कि हम पिछले जन्म में क्या थे ? या आगे क्या होंगे ?

उत्तर :- नहीं कभी नहीं, सामान्य मनुष्य को यह पता नहीं लग सकता । क्योंकि यह केवल ईश्वर का ही अधिकार है कि हमें हमारे कर्मों के आधार पर शरीर दे । वही सब जानता है ।

(33) प्रश्न :- तो फिर यह किसको पता चल सकता है ?

उत्तर :- केवल एक सिद्ध योगी ही यह जान सकता है , योगाभ्यास से उसकी बुद्धि । अत्यन्त तीव्र हो चुकी होती है कि वह ब्रह्माण्ड एवं प्रकृति के महत्वपूर्ण रहस्य़ अपनी योगज शक्ति से जान सकता है । उस योगी को बाह्य इन्द्रियों से ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं रहती है
वह अन्तः मन और बुद्धि से सब जान लेता है । उसके सामने भूत और भविष्य दोनों सामने आ खड़े होते हैं ।

(34) प्रश्न :- यह बतायें की योगी यह सब कैसे जान लेता है ?

उत्तर :- अभी यह लेख पुनर्जन्म पर है, यहीं से प्रश्न उत्तर का ये क्रम चला देंगे तो लेख का बहुत ही विस्तार हो जायेगा । इसीलिये हम अगले लेख में यह विषय विस्तार से समझायेंगे कि योगी कैसे अपनी विकसित शक्तियों से सब कुछ जान लेता है ? और वे शक्तियाँ कौन सी हैं ? कैसे प्राप्त होती हैं ? इसके लिए अगले लेख की प्रतीक्षा करें…

(35) प्रश्न :- क्या पुनर्जन्म के कोई प्रमाण हैं ?

उत्तर :- हाँ हैं, जब किसी छोटे बच्चे को देखो तो वह अपनी माता के स्तन से सीधा ही दूध पीने लगता है जो कि उसको बिना सिखाए आ जाता है क्योंकि ये उसका अनुभव पिछले जन्म में दूध पीने का रहा है, वर्ना बिना किसी कारण के ऐसा हो नहीं सकता । दूसरा यह कि कभी आप उसको कमरे में अकेला लेटा दो तो वो कभी कभी हँसता भी है , ये सब पुराने शरीर की बातों को याद करके वो हँसता है पर जैसे जैसे वो बड़ा होने लगता है तो धीरे धीरे सब भूल जाता है…!

(36) प्रश्न :- क्या इस पुनर्जन्म को सिद्ध करने के लिए कोई उदाहरण हैं…?

उत्तर :- हाँ, जैसे अनेकों समाचार पत्रों में, या TV में भी आप सुनते हैं कि एक छोटा सा बालक अपने पिछले जन्म की घटनाओं को याद रखे हुए है, और सारी बातें बताता है जहाँ जिस गाँव में वो पैदा हुआ, जहाँ उसका घर था, जहाँ पर वो मरा था । और इस जन्म में वह अपने उस गाँव में कभी गया तक नहीं था लेकिन फिर भी अपने उस गाँव की सारी बातें याद रखे हुए है , किसी ने उसको कुछ बताया नहीं, सिखाया नहीं, दूर दूर तक उसका उस गाँव से इस जन्म में कोई नाता नहीं है । फिर भी उसकी गुप्त बुद्धि जो कि सूक्ष्म शरीर का भाग है वह घटनाएँ संजोए हुए है जाग्रत हो गई और बालक पुराने जन्म की बातें बताने लग पड़ा…!

(37) प्रश्न :- लेकिन ये सब मनघड़ंत बातें हैं, हम विज्ञान के युग में इसको नहीं मान सकते क्योंकि वैज्ञानिक रूप से ये बातें बेकार सिद्ध होती हैं, क्या कोई तार्किक और वैज्ञानिक आधार है इन बातों को सिद्ध करने का ?

उत्तर :- आपको किसने कहा कि हम विज्ञान के विरुद्ध इस पुनर्जन्म के सिद्धान्त का दावा करेंगे । ये वैज्ञानिक रूप से सत्य है , और आपको ये हम अभी सिद्ध करके दिखाते हैं..!

(38) प्रश्न :- तो सिद्ध कीजीए ?

उत्तर :- जैसा कि आपको पहले बताया गया है कि मृत्यु केवल स्थूल शरीर की होती है, पर सूक्ष्म शरीर आत्मा के साथ वैसे ही आगे चलता है , तो हर जन्म के कर्मों के संस्कार उस बुद्धि में समाहित होते रहते हैं । और कभी किसी जन्म में वो कर्म अपनी वैसी ही परिस्थिती पाने के बाद जाग्रत हो जाते हैं

इसे उदहारण से समझें :- एक बार एक छोटा सा ६ वर्ष का बालक था, यह घटना हरियाणा के सिरसा के एक गाँव की है । जिसमें उसके माता पिता उसे एक स्कूल में घुमाने लेकर गये जिसमें उसका दाखिला करवाना था और वो बच्चा केवल हरियाणवी या हिन्दी भाषा ही जानता था कोई तीसरी भाषा वो समझ तक नहीं सकता था ।

लेकिन हुआ कुछ यूँ था कि उसे स्कूल की Chemistry Lab में ले जाया गया और वहाँ जाते ही उस बच्चे का मूँह लाल हो गया !! चेहरे के हावभाव बदल गये !!

और उसने एकदम फर्राटेदार French भाषा बोलनी शुरू कर दी !! उसके माता पिता बहुत डर गये और घबरा गये , तुरंत ही बच्चे को अस्पताल ले जाया गया । जहाँ पर उसकी बातें सुनकर डाकटर ने एक दुभाषिये का प्रबन्ध किया ।

जो कि French और हिन्दी जानता था , तो उस दुभाषिए ने सारा वृतान्त उस बालक से पूछा तो उस बालक ने बताया कि ” मेरा नाम Simon Glaskey है और मैं French Chemist हूँ । मेरी मौत मेरी प्रयोगशाला में एक हादसे के कारण ( Lab. ) में हुई थी । “

तो यहाँ देखने की बात यह है कि इस जन्म में उसे पुरानी घटना के अनुकूल मिलती जुलती परिस्थिति से अपना वह सब याद आया जो कि उसकी गुप्त बुद्धि में दबा हुआ था । यानि की वही पुराने जन्म में उसके साथ जो प्रयोगशाला में हुआ, वैसी ही प्रयोगशाला उस दूसरे जन्म में देखने पर उसे सब याद आया । तो ऐसे ही बहुत सी उदहारणों से आप पुनर्जन्म को वैज्ञानिक रूप से सिद्ध कर सकते हो…!

(39) प्रश्न :- तो ये घटनाएँ भारत में ही क्यों होती हैं ? पूरा विश्व इसको मान्यता क्यों नहीं देता ?

उत्तर :- ये घटनायें पूरे विश्व भर में होती रहती हैं और विश्व इसको मान्यता इसलिए नहीं देता क्योंकि उनको वेदानुसार यौगिक दृष्टि से शरीर का कुछ भी ज्ञान नहीं है । वे केवल माँस और हड्डियों के समूह को ही शरीर समझते हैं , और उनके लिए आत्मा नाम की कोई वस्तु नहीं है । तो ऐसे में उनको न जीवन का ज्ञान है, न मृत्यु का ज्ञान है, न आत्मा का ज्ञान है, न कर्मों का ज्ञान है, न ईश्वरीय व्यवस्था का ज्ञान है । और अगर कोई पुनर्जन्म की कोई घटना उनके सामने आती भी है तो वो इसे मानसिक रोग जानकर उसको Multiple Personality Syndrome का नाम देकर अपना पीछा छुड़ा लेते हैं और उसके कथनानुसार जाँच नहीं करवाते हैं…!

(40) प्रश्न :- क्या पुनर्जन्म केवल पृथिवी पर ही होता है या किसी और ग्रह पर भी ?

उत्तर :- ये पुनर्जन्म पूरे ब्रह्माण्ड में यत्र तत्र होता है, कितने असंख्य सौरमण्डल हैं, कितनी ही पृथीवियाँ हैं । तो एक पृथीवी के जीव मरकर ब्रह्माण्ड में किसी दूसरी पृथीवी के उपर किसी न किसी शरीर में भी जन्म ले सकते हैं । ये ईश्वरीय व्यवस्था के अधीन है…

परन्तु यह बड़ा ही अजीब लगता है कि मान लो कोई हाथी मरकर मच्छर बनता है तो इतने बड़े हाथी की आत्मा मच्छर के शरीर में कैसे घुसेगी..?

यही तो भ्रम है आपका कि आत्मा जो है वो पूरे शरीर में नहीं फैली होती । वो तो हृदय के पास छोटे अणुरूप में होती है । सब जीवों की आत्मा एक सी है । चाहे वो व्हेल मछली हो, चाहे वो एक चींटी हो।

અમૃતબિન્દુ

Human body has GODS inside

मानव शरीर में कौन कौन से देवताओं का वास है और उनके कार्य क्या हैं
मानव शरीर एक देवालय (मंदिर) है

ईश्वर ने अपनी माया से चौरासी लाख योनियों की रचना की लेकिन जब उन्हें संतोष न हुआ तो उन्होंने मनुष्य शरीर की रचना की।
मनुष्य शरीर की रचना करके ईश्वर बहुत ही प्रसन्न हुए क्योंकि मनुष्य ऐसी बुद्धि से युक्त है जिससे वह ईश्वर के साथ साक्षात्कार कर सकता है।

हमारे ज्ञानवान पाठक जानते हैं कि मानव शरीर एक देवालय है। ईश्वर ने पंचभूतों (आकाश ,वायु ,अग्नि भूमि और जल ) से मानव शरीर का निर्माण कर उसमें भूख-प्यास भर दी।

आकाश की सूक्ष्म शरीर से, भूमि की हड्डियों, flesh से और अग्नि की body heat के साथ तुलना की गयी है।

देवताओं ने ईश्वर से कहा कि हमारे रहने योग्य कोई स्थान बताएं जिसमें रह कर हम अपने भोज्य-पदार्थ का भक्षण कर सकें। देवताओं के आग्रह पर जल से गौ और अश्व बाहर आए पर देवताओं ने यह कह कर उन्हें ठुकरा दिया कि यह हमारे रहने के योग्य नहीं हैं।

जब मानव शरीर प्रकट हुआ तब सभी देवता प्रसन्न हो गए।
तब ईश्वर ने कहा—अपने रहने योग्य स्थानों में तुम प्रवेश करो ।

तब सूर्य नेत्रों में ज्योति (प्रकाश) बन कर, वायु छाती और नासिका-छिद्रों में प्राण बन कर,
अग्नि मुख में वाणी और उदर में जठराग्नि बन कर,
दिशाएं श्रोत्रेन्द्रिय (सुनना ) बन कर कानों में,
औषधियां और वनस्पति लोम (रोम) बन कर त्वचा में,
चन्द्रमा मन होकर हृदय में, मृत्यु (मलद्वार) होकर नाभि में और जल देवता वीर्य होकर पुरुषेन्द्रिय में प्रविष्ट हो गए।

तैंतीस देवता अंश रूप में आकर मानव शरीर में निवास करते हैं ।

उपनिषद् का निम्नलिखित कथानक मानव शरीर के देवालय होने की पुष्टि करता है :

हमारा शरीर भगवान का मंदिर है। यही वह मंदिर है, जिसके बाहर के सब दरवाजे बंद हो जाने पर जब भक्ति का भीतरी पट खुलता है, तब यहां ईश्वर ज्योति रूप में प्रकट होते हैं और मनुष्य को भगवान के दर्शन होते हैं।

आइये देखें मानव शरीर में कौन कौन से देवताओं का वास है और उनके कार्य क्या हैं :

संसार में जितने देवता हैं, उतने ही देवता मानव शरीर में “अप्रकट” रूप से स्थित हैं, किन्तु दस इन्द्रियों (पांच ज्ञानेन्द्रिय और पांच कर्मेन्द्रियां) के और चार अंतकरण (भीतरी इन्द्रियां—बुद्धि, अहंकार, मन और चित्त) के अधिष्ठाता देवता प्रकट रूप में हैं। इस सभी इन्द्रियों का टोटल किया जाये तो 14 बनता है।

आइए इन देवताओं के बारे में संक्षेप में जानकारी प्राप्त करें ,इतनी संक्षेप में कि साधारण मनुष्य को भी समझ आ जाये। सभी कठिन शब्दों को सरल करने का प्रयास तो किया है लेकिन जिनका सरलीकरण नहीं किया गया है वह केवल इस लिए कि सरलीकरण के बाद और अधिक कठिनता देखी गयी थी।

  1. नेत्रेन्द्रिय (चक्षुरिन्द्रिय) के देवता—भगवान सूर्य नेत्रों में निवास करते हैं और उनके अधिष्ठाता देवता हैं; इसीलिए नेत्रों के द्वारा किसी के रूप का दर्शन सम्भव हो पाता है । नेत्र विकार में चाक्षुषोपनिषद्, सूर्योपनिषद् की साधना और सूर्य की उपासना से लाभ होता है ।
  2. घ्राणेन्द्रिय (नासिका) के देवता—नासिका के अधिष्ठाता देवता अश्विनीकुमार हैं । इनसे गन्ध का ज्ञान होता है ।
  3. श्रोत्रेन्द्रिय (कान) के देवता—श्रोत-कान के अधिष्ठाता देवता दिक् देवता (दिशाएं) हैं । इनसे शब्द सुनाई पड़ता है ।
  4. जिह्वा के देवता—जिह्वा में वरुण देवता का निवास है, इससे रस का ज्ञान होता है ।
  5. त्वगिन्द्रिय (त्वचा) के देवता—त्वगिन्द्रिय के अधिष्ठाता वायु देवता हैं । इससे जीव स्पर्श का अनुभव करता है ।
  6. हस्तेन्द्रिय (हाथों) के देवता—मनुष्य के अधिकांश कर्म हाथों से ही संपन्न होते हैं । हाथों में इन्द्रदेव का निवास है ।
  7. चरणों के देवता—चरणों के देवता उपेन्द्र (वामन, श्रीविष्णु) हैं । चरणों में विष्णु का निवास है ।
  8. वाणी के देवता—जिह्वा में दो इन्द्रियां हैं, एक रसना जिससे स्वाद का ज्ञान होता है और दूसरी वाणी जिससे सब शब्दों का उच्चारण होता है । वाणी में सरस्वती का निवास है और वे ही उसकी अधिष्ठाता देवता हैं ।
  9. उपस्थ (मेढ़ू) के देवता—इस गुह्येन्द्रिय के देवता प्रजापति हैं । इससे प्रजा की सृष्टि (संतानोत्पत्ति) होती है ।
  10. गुदा के देवता—इस इन्द्रिय में मित्र, मृत्यु देवता का निवास है । यह मल निस्तारण कर शरीर को शुद्ध करती है ।
  11. बुद्धि इन्द्रिय के देवता—बुद्धि इन्द्रिय के देवता ब्रह्मा हैं । गायत्री मंत्र में सद्बुद्धि की कामना की गई है इसीलिए यह ‘ब्रह्म-गायत्री’ कहलाती है । जैसे-जैसे बुद्धि निर्मल होती जाती है, वैसे-वैसे सूक्ष्म ज्ञान होने लगता है, जो परमात्मा का साक्षात्कार भी करा सकता है ।
  12. अहंकार के देवता—अहं के अधिष्ठाता देवता रुद्र हैं । अहं से ‘मैं’ का बोध होता है ।
    1. मन के देवता—मन के अधिष्ठाता देवता चन्द्रमा हैं । मन ही मनुष्य में संकल्प-विकल्प को जन्म देता है । मन का निग्रह परमात्मा की प्राप्ति करा देता है और मन के हारने पर मनुष्य निराशा के गर्त में डूब जाता है ।
  13. चित्त के देवता—प्रकृति-शक्ति, चिच्छत्ति ही चित्त के देवता हैं । चित्त ही चैतन्य या चेतना है । शरीर में जो कुछ भी स्पन्दन (चलन, चेतना) होती है, सब उसी चित्त के द्वारा होती है ।

भगवान ने ब्रह्माण्ड बनाया और समस्त देवता आकर इसमें स्थित हो गए, किन्तु तब भी ब्रह्माण्ड में चेतना नहीं आई और वह विराट् मनुष्य उठा नहीं। जब चित्त के अधिष्ठाता देवता ने चित्त में प्रवेश किया तो विराट् पुरुष उसी समय उठ कर खड़ा हो गया। इस प्रकार भगवान संसार में सभी क्रियाओं का संचालन करने वाले देवताओं के साथ इस शरीर में विराजमान हैं

अब मनुष्य का कर्तव्य है कि वह भगवान द्वारा बनाए गए इस देवालय को कैसे साफ-सुथरा रखे ? इसके लिए निम्न कार्य किए जाने चाहिए:

  1. नकारात्मक विचारों और मनोविकारों-काम,क्रोध,लोभ,मोह,ईर्ष्या,अहंकार से दूर रहे ।
  2. योग साधना, व्यायाम व सूर्य नमस्कार करके अधिक-से-अधिक पसीना बहाकर शरीर की आंतरिक गंदगी दूर करें ।
  3. अनुलोम-विलोम व सूक्ष्म क्रियाएं करके ज्यादा-से ज्यादा शुद्ध हवा का सेवन करे ।
  4. शुद्ध सात्विक भोजन सही समय पर व सही मात्रा में करके पेट को साफ रखें ।

नीचे दिए गए विवरण को पढ़ते समय आप सोच रहे होंगें कि ऊपर दी गयी जानकारी रिपीट हो रही है। हाँ कुछ तथ्य रिपीट अवश्य हो रहे हैं लेकिन इनका अध्ययन करना लाभदायक ही होगा।

हम जानते हैं कि मनुष्य का शरीर एक देवालय है। इस देवालय के आठ चक्र और नौ द्वार हैं। अर्थववेद में कहा गया है-

“अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या,तस्यां हिरण्ययः कोशः स्वर्गो ज्योतिषावृतः”

जिसका अर्थ है कि आठ चक्र और नौ द्वारों वाली अयोध्या देवों की पुरी है, उसमें प्रकाश वाला कोष है जो आनन्द और प्रकाश से युक्त है अर्थात आठ चक्रों और नौ द्वारों से युक्त यह देवों की अयोध्या नामक नगरी है।

विज्ञान के अनुसार मनुष्य का जन्म माता-पिता के संयोग से संभव हो पाता है।

लेकिन क्या केवल संयोग से ही मनुष्य की रचना हो जाती हैं, बिलकुल नहीं ! इसके लिए देवी-देवताओं का सहयोग भी होता है। 33 कोटी के देवी-देवता जैसे कि सूर्य, पृथ्वी, वायु, जल, आकाश, चन्द्र आदि हमारे जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है।

हमारी माता के गर्भ में ये देव अपने एक-एक अंश से बच्चा पैदा करने और उसका पालन पोषण करने में सहयोग करते हैं।

ज़रा कल्पना करें कि अगर वायुदेव माँ के गर्भ में न पहुंच पाए तो क्या गर्भ में जीवन संभव हो सकता है। यही बात जल की है,यही बात अग्नि आदि देवों के बारे में भी लागू होती है। इन सभी देवों को एक-एक करके समझने के लिए तो विज्ञान और अध्यात्म की बैकग्राउंड होनी चाहिए ,अग्निदेव का अर्थ यह कदापि न लिया जाए कि माँ के गर्भ में कोई स्टोव या भट्टी स्थापित है और वह बच्चे के लिए खाना पका रही है। बेसिक साइंस का ज्ञान बताता है कि भोजन का पचना (digestion),उससे रक्त का बनना, एनर्जी का पैदा होना एक प्रकार का combustion/ burning/ignition process है।

अथर्ववेद के 5वें कांड में लिखा है:

सूर्य मेरी आँखें हैं, वायु मेरे प्राण हैं,अन्तरिक्ष मेरी आत्मा है और पृथ्वी मेरा शरीर है। इस तरह दिव्यलोक का सूर्य, अंतरिक्ष लोक की वायु और पृथ्वी लोक के पदार्थ क्रमशः मेरी आँखें और प्राण स्थूल शरीर में आकर रह रहे है और हाथ जो तीनों लोकों के सूक्ष्म अंश हैं, हमारे शरीर में अवतरित हुए हैं। इसीलिए ज्ञानी मनुष्य मानव शरीर को ब्रह्म मानता है क्योंकि सभी देवता इसमें वैसे ही रहते हैं जैसे गोशाला में गायें रहती हैं। माँ के गर्भ में 33 देवता अपने-अपने सूक्ष्म अंशों से रहते हैं परन्तु यह गर्भ तभी स्थिर (ठोस) होने लगता है जब परमात्मा अपने अंश से गर्भ में जीवात्मा को अवतरित करते हैं | उस समय सभी देवता गर्भ में उस परमात्मा की स्तुति करते हैं और उसकी रक्षा व् वृद्धि करते है | सभी देवता प्रार्थना करते हैं कि- हे जीव ! आप अपने साथ अन्य जीवों का भी कल्याण करना,परन्तु जन्म के समय के कठिन कष्ट के कारण मनुष्य इन बातों को भूल जाता है |

वेद का मंत्र हमें यह स्मरण दिलाता है मैं अमर अथवा अदम्य शक्ति से युक्त हूँ। हमारा शरीर ऐसा दिव्य और मनोहारी मनुष्य शरीर होता है। तभी तो उपनिषदों में ऋषियों का अमर संदेश गूंजता है: अहं ब्रह्मास्मि तत्वमसि | इसी तरह सभी जीवों की उत्पत्ति होती है। अतः देवता यह घोषणा करते हैं कि सृष्टि का हर प्राणी परमात्मा का ही अंश है इसलिए हम सभी को इसी भगवानमय दृष्टि से एक दूसरे को देखना चाहिए। इस वाक्य को पढ़कर आज के मानव पर घृणा तो आती है कि हमारे वेद, पुराण, उपनिषद ,देवता क्या शिक्षा देते हैं, कैसे इतने परिश्रम से सृष्टि की स्थापना करते हैं,लेकिन मानव
महामानव और देवमानव बनने के बजाय दैत्यमानव बनने में कोई कसर नहीं छोड़ता। शायद उस मानव को यह नहीं मालूम की सृष्टि के नियम, विधाता की अदालत में एक-एक प्राणी के एक-एक कर्म का लेखा लिखा जा रहा है। कर्म अपने कर्ता को ढूंढ ही निकालता है, सज़ा या इनाम मिल कर ही रहते हैं। कर्म की थ्योरी इतनी strong है कि इससे तो देवता क्या भगवान तक भी बच नहीं पाए।

ॐ नमः शिवाय 🙏
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय🙏🏻

The Paracas Candelabra: An Unsolved Enigma in Andes Mountain is connected with Ramayana

Mahashivaratri 2024

Black hole sound

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Devi Pisachi | Bhairav Says…

When we hea rthe word “Pisachi” we start to imagine a fearful looking female, perhaps with long protruding canine tooth, flesh eating and vampirish. Or  some bhoot , pret, ghost or some other spooky being comes to the imaginative mind. But actually one of presiding goddess’s form of heart chakra is Pisachi Devi who has…
— Read on kaulabhairav.wordpress.com/2013/07/05/devi-pisachi/

History of Bharat needs to be rewritten

If our ancestors keep losing the war,
So how have we been alive 1200 years?

Nowadays people have become a thinking that
Rajputs fought,
But they were a lost warrior,
Who ever lost to Alauddin,
Sometimes lost to Babar, sometimes to Akbar,
Ever from Aurangzeb…

Is it really like this?

Even in society many of these
He is a confused Rajput,
Joe Maharana Pratap, Prithviraj Chauhan
As timeless warriors are called great,
But in their minds they have lost warriors!

Such lines about Maharana Pratap are proudly recited :-

“Don’t talk about win or lose,
Focus on the struggles “

“Some people lose even after winning,
Some win even after losing”

The real thing is that we are taught the same history, in which we lost, because our morale is low,
This evil act was done by the leftists.

Rana Sanga of Mewar fought more than 100 wars,
The world knows about the same war which was defeated in only one war,
The history of Rana Sanga is started with the same war and ends with the same…

When it comes to wars like Khandar, Ahmednagar, Bari, Gagaron, Bayana, Idar, Khatauli fought by Rana Sanga, we probably won’t be able to tell and if we can tell, not as much as we can tell about Khanwa.

Even if Rana Sanga loses one hand and one leg in the war of Khatauli and chases Delhi’s Ibrahim Lodi to Delhi, it doesn’t matter.
Babar had to run away in the war of Bayana
Even then she is minor…

What matters for them is the war of Khanwa in which Mughal King Babar defeated Rana Sanga!

When it comes to Emperor Prithviraj Chauhan, Gauri defeated Prithviraz Chauhan in the second war of Tarain!

The war of Tarain was the last war fought by Prithviraj Chauhan, before that how much do we know about the wars they fought?

If Maharana Pratap is mentioned in the same way, the name Haldighati is heard first.

Although the results of this war were controversial from the beginning, sometimes undefined, sometimes Akbar considered winner and recently Maharana was considered winner!

Baharhal, Maharana Pratap won a total of 21 big wars like Gogunda, Chawand, Mohi, Madaria, Kumbhalgarh, Idar, Mandal, Diver and destroyed more than 300 Mughal camps!

At the time of Maharana Pratap, there were about 50 fortresses in Mewar, out of which almost all of them were ruled by Mughals and 26 forts were changed to Muslim names, such as Udaipur became Muhammadabad, Chittorgarh became Akbarabad…

Then how do we know Udaipur as Udaipur today?…
Nobody tells us this!

Actually Maharana Pratap had conquered all except 2 of these 50 forts
And almost had the entire Mewad authority again!

In a war like Diver, even if Maharana’s son Amarsingh has discarded Akbar’s uncle Sultan Khan with a spear attack, but he will only teach us the history of Haldighati war,
The rest of the wars are all minor after this!

Maharana Amarsingh fought 17 big wars with the Mughal King Jahangir and destroyed more than 100 Mughal posts, but we are only taught that 1615 E. Maharana Amarsingh made treaty with Mughals.
Nobody will tell that 1597 E. From 1615 E. What happened in between..!

Maharana Kumbha built 32 forts, wrote many books, built victory pillars, we know this, but can you name the 4-5 wars he fought?

Maharana Kumbha fought with Abu, Mandalgarh, Khatkad, Jahanajpur, Gagaron, Mandu, Narana, Malarana, Ajmer, Modalgarh, khatu, Jangal Pradesh, Kansli, Nardiyanagar, Hamirpur, Shonyanagari, Vaasa, Pindwara, Shakambhari, Sambhar, Chatsu, Khandela, Amer, Sehare, Joginipur, Vishal Nagar, Janagar, Kotda, Mallargarh, Ranthambh, Dungarpur, Nagar, Hamirnagar, Kotra, Dungarh, Nagarh, Hundi, Hundi and Hameer, Hoodi, Kotrah, Ranagar, Ranagarh, Ranagarh, Bundi, Budi, Budh, Budi He has never seen defeat in any battle in his entire lifetime!

When it comes to Chittorgarh fort, only 3 wars are discussed:
1) Alauddin defeated Rawal Ratansingh,
2) Bahadur Shah won Chittorgarh fort at the time of Rana Vikramaditya;
3) Akbar defeated Maharana Uday Singh and captured the fort!

Have there ever been any attacks on Chittorgarh other than these three wars?

In this way, the war that Rajputs have lost, we are taught the same thing in history.

Many people give us knowledge that Rajputs ancestors did not work with right strategy, used poor weapons that is why always losers…

Now in what words should I explain to them that with the same weapons Rajputs have won countless wars, anointed the motherland with blood, for hundreds of years have faced fire spitting cannons of foreign enemies with their swords and repeatedly dusted the enemies.

India has increased more than one warrior,
There was a name among them “Sea Secret” whose name was confined to a corner of history, called Napoleon of India,
Set out for world conquer 3 times,
But such a warrior was made anonymous.

We know that really our history is not written by the ideology loving India,
And somewhere else to the full history of bias
Recognition has also been achieved in our country…
Now history should be reevaluated by scholars.

So that you and we can read the real history about our glorious Chakraborty emperors and great men of India and the coming generations will understand us as who we really were and bow down to those real heroes of India!

#rewritehistoryofbharat